ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत भस्माभूत देही पुनर्जन्म कुत: ताऊ

bearमर्ज बढ़ता गया, ज्यों ज्यों दवा की ! अभी तो यही कहावत चरितार्थ होती दिख रही है !  जी-२० देशों की बैठक वाशिंगटन डी.सी. में हुई ! जहाँ पहली बार इन्डोनेशिया,भारत और ब्राजील जैसे देशो की बात को तवज्जो दी गई ! और ये सिर्फ़ इतराने की बात हो सकती है ! राष्ट्राध्यक्ष किसी भी राष्ट्र के हो उनको आर्थिक मामलों की समझ नही के बराबर होती है  और वो एक आर्थिक सलाहकार नाम का प्राणी अपने बेडे में रखते हैं जो ऐसे मौको के लिए उनको तकरीर लिख देता है ! और ये नेतागण उसको ऎसी बैठको में पढ़ कर वाह वाही लूटने की कोशीश करते है ! हमारे पी.एम. साहब भले इस श्रेणी के नही हो, पर ऐसा संयोंग यदा कदा ही देखने को मिल सकता है ! और यह संयोंग भी किसी राजनैतिक मजबूरी का हिस्सा था ! वरना अर्थशाष्त्री राजनैतिक गलियारों में भले दिख जाए पर  इन  पदों पर कम ही देखे गए हैं !

 

नए ताऊ ओबामा ने इसमे भाग नही लिया ! और बुढे ताऊ बुश  अब नाम के राष्ट्राध्यक्ष हैं ! यानी कोई ठोस कदम इस बैठक में नही दिखे ! यूरोप के १५ देश पहले ही मंदी की घोषणा कर चुके हैं ! और अपनी वितीय संस्थाओं को बचाने के लिए झोलिया फैलाने को तैयार बैठे हैं ! जब इस संकट की जड़ अमेरिका में है और वहीं से कोई ठोस पहल नही हो रही तो दुसरे समृद्ध देशो को क्या पडी है ! और बुढे ताऊ बुश  कुछ ठोस उपाय दिखाते तो अब उनकी बात सुनने वाला भी कौन है !

 

इस सम्मलेन में नियम कानून, पारदर्शिता  और वितीय संस्थाओं के काम काज में सुधार जैसे ओचित्य हीन मुद्दों पर बात  हुई ! ठीक है भई ! मान लिया की भारत और चीन जैसे लिजलिजे राष्ट्रों में इनकी जरुरत है पर आप फिरंगी राष्ट्र तो काफी इमानदार और नियम पालन करने वाले थे फ़िर आप क्यों दिवालिया हो रहे हो ? क्यों भयंकर मंदी के शिकार होकर लोगो को नौकरियों से निकाल रहे हो ? तुम्हारे बैंक क्यों दिवालिया हो रहे है ? 

 

असल में दोस्तों, इस बीमारी की जड़ में उपभोक्तावाद का किटाणु घुसा हुआ है ! और इस तरफ़ किसी ने उंगली भी नही उठाई ! इन पश्चिमी  फिरंगी  राष्ट्रों का रोमरोम कर्ज में डूबा हुआ है !   इनको हर चीज में ऋण लेने की आदत है ! अकेले अमेरिका पर ९/१० खरब डालर का कर्ज है ! हर नागरिक कर्जदार है ! और नागरिक भी सिर्फ़ मकान ही नही बल्कि छुट्टी के मौज मजे, खाने -पीने,  घूमने,  कार और यहाँ तक की कर्ज चुकाने के लिए भी कर्ज लेने की आदत के शिकार है ! यानि  "ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत भस्माभूत  देही पुनर्जन्म कुत: " का परम सूत्र देने वाले ब्रह्मऋषि चार्वाक के असली अनुयायी ये ही  हैं , भले चार्वाक भारत भूमि की शान थे ! शायद ऋषि के इन्ही फार्मूलों ने इन कंपनियों को ये लोन का धंधा करने के लिए उकसाया होगा !

 

और इन सब नागरिको को ये आदत वहाँ की वितीय संस्थाओं ने ही लगाई ! मतलब ऋण लेने के लिए भी प्रलोभन देकर उकसाया गया ! आज इसी आदत का शिकार होकर कितने ही लोगो के घर और नौकरिया छीनी जा चुकी हैं और वो खुले आसमान के नीचे रात बिताने को मजबूर हैं !

 

मैंने पहले भी कहा था की जिस रोज क्रेडिट कार्ड का भूत बोतल से बाहर आयेगा उस रोज ना जाने कितनी ही कंपनिया दिवालिया हो जायेंगी ! जिस आदमी की जीरो हैसियत है उसे भी असंख्य क्रेडिट कार्ड दे दिए गए हैं ! टोपी घूम रही है ! इस टोपी घूमने का किस्सा आप नीचे खूंटे पर पढ़ लेना !  और माफ़ करिएगा , ये ख़तरा हम सब  पर  बना हुआ है ! आप ये मत सोचना की आप इस व्यवस्था से बाहर हैं !

 

भारत में भी बहुत क्रेडिट कार्ड प्रेमी और इ.एम्.आई प्रेमी बसते हैं ! और कई तो ऐसे हैं जिन्होंने क्रेडिट कार्ड से लोन  ३/४ % प्रतिमाह का लेकर , वो पैसा शेयर बाजार की भठ्ठी में झोंक दिया है ! जब उनकी टोपी घूमना बंद हो जायेगी तब क्या होगा ?

 

असल में इन्ही फिरंगियों ने इराक़ अफगानिस्तान में जो अरबो खरबों डालर फूंक कर  नंगा नाच किया है उसका खामियाजा आख़िर कभी ना कभी तो भुगतना ही था ! और ये बेशर्म आज भी करोडो डालर वहाँ रोज फूंक रहे हैं ! "घर में नही दाने  और अम्मा चली भुनाने" ! आख़िर पाप का घडा कभी तो फूटना ही था !

 

आज  मजे की बात की चीन जैसे देश ने भी छह सौ बिलियन डालर अपने उद्योगों की मदद के लिए ढीले किए हैं ! सभी अपने अपने हिसाब से सैन्य प्रबंधन में लगे हैं ! मेरा सोचना है की इन नकद प्रबंधनों के द्वारा कुछ नही होगा ! आज भी जरुरत है की हमको अपनी चादर जितने ही पैर पसारने की ! हमें इस उपभोक्तावाद की संस्कृति के बारे में नए सिरे से सोचना होगा ! आप सोचे या ना सोचे ! अभी आने वाले समय की डगर मुझे बहुत कठिन नही तो कठिन तो अवश्य ही दिखाई दे रही है ! कुछ समय बाद आपको मानना ही पडेगा की "बहुत कठिन है डगर पनघट की" !

 

आज भी भारत के ८०/८५ करोड़ लोग १५/२० रुपये रोज में अपना पेट पालते है ! उस राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष को इन फिरंगियों द्वारा बुलवाया जाना सम्मानजनक भले ही दिखता हो ! पर क्या इस तरह की आबादी के नेता उन मोटे पेट के राष्ट्रों को सलाह देने के काबिल भी हैं ? यहाँ भी उनको इसलिए सम्मान दिया गया है की "सनम हम तो ड़ूब चुके हैं अब हम तुम्हारे कंधे पर लटक कर तुमको भी डूबोयेन्गे" ! और हमारे प्रधानमंत्री और मीडिया इसे इज्जत बख्शना समझ रहे हैं ! मुझे इसका मकसद ही फिरंगियों द्वारा अपना भविष्य का उल्लू सीधा करना दिखाई दे रहा है !

 

 

इब खूंटे पै पढो :-

 

टोपी ऐसे घुमाई जाती है !

 

एक बार ताऊ ने पचास हजार रुपये का कर्ज ले लिया ज्ञानदत्तजी से ! उसे समय पर लौटाने के लिए अगला कर्ज लिया शुक्ल जी से , उनको लौटाया डा. अनुराग जी से लेके, इनको लौटाया भाटिया जी से लेके, इनको लौटाया मित्र पित्सबर्गिया से लेके , फ़िर इनको लौटाया डा. अरविन्द मिश्रा से लेके ! सबको समय पर पैसा पहुंचा ! ताऊ हो गया साख दार आसामी ! अब आखिरी पैसा लिया गया था डा. अरविन्द मिश्रा जी से ! इनको पुन: लौटाने के लिए फ़िर ज्ञानदत्तजी से लेके दिया और यह चक्र यूँ ही चलता रहा ! अब इसमे ब्याज बढ़ता रहा ! और अब ये सलमे सितारे वाली  टोपीबाजी चलते चलते, कुछ समय बाद यही  ५० हजार का कर्ज हो गया १ लाख का ! पर समय पर चुकाने की वजह से ताऊ की साख बढ़ती गई ! सब ताऊ को पैसे माँगने के पहले ही उसके घर पहुंचा देते थे ! गाँव दुनिया की नजर में ताऊ हो गया , मालदार आसामी , जबकि था वो एक असली  कर्जदार !

 

अब इतने समय बाद ताऊ का भी दिमाग ख़राब हो गया ! रोज इससे लो और उसको दो ! अच्छी आफत खडी हो गई ! ताऊ हो गया त्रस्त ! आख़िर जब काबू से बाहर काम हो गया तो उसने एक दिन सारे ऋण दाताओं को सुचना भेज दी की आप आपस में ही मेरे बिहाफ पर एक दुसरे को रुपये देते लेते रहो !  जब जिसका नंबर हो दे दो और तुम्हारी कमाई और मेरा कर्ज चुकता होता रहेगा ! अब मैं कहाँ रोज रोज झंझट में पडू ?

 

अर्थ जगत और खासकर देशी भारतीय अर्थ जगत में हम इसे पुराने समय में मजाक के तौर पर कहा करते थे , पर आज ये ही बोतल का जिन्न बन चुका है ! बात बहुत गहरी है ! सोच के देखिये ! मैंने ऊपर आप सब महानुभाओं  के नाम बात समझाने  के लिए लिए हैं ! कृपया अन्यथा नही ले !

 

 

Comments

  1. क्यों नहीं लें भई, यह तो कोई बात नहीं हुई! बहुत अच्छी तहरीर रही, धन्यवाद!
    ताऊ ने तो पचास हज़ार ले लिए और हमसे कह रहे हैं कि, "कृपया अन्यथा नही ले!"

    ReplyDelete
  2. चार्वाक के दर्शन को समझ के ही हम सब का बन्टाधार हो रहा है. ताऊ जी लेकिन आप लिखते मजेदार हो ,मजाक -मजाक में गंभीर बात कहना तो कोई आप से जाने . एक कहावत आपने सुनाया मज़ा आ गया कि - घर में नही है दाने -अम्मा चली भुनाने ..इसी से मिलती - जुलती एक गंवई कहावत हम लोंगो की तरफ़ अवधी में भी है कि -बाप अन्हियारे मरि गा -बेटवा क नाउ पावर हॉउस .

    ReplyDelete
  3. ताऊ, उदाहरण बहुत सही समझाया है, पनघट की डगर कठिन ही नही बहुत बहुत कठिन है, इसके छींटे ज्यादातर देशों में पड़ना स्वाभाविक ही लग रहा है।

    ReplyDelete
  4. मेरी तो नेक सलाह है कि ताऊ कि दूसरों का कर्जा जैसे भी हो चुका दो ,मेरी चिंता छोडो क्योंकि हमारा तुम्हारा हिसाब /लेन देन लंबे समय तक चलेगा तब तक पता नहीं कौन लोग इस ब्लाग्वुड में रहें या चलता/चलती बने -उनका हिसाब कर दो भाई ! दूसरे चारवाक ने वह सीख गरीबों ,बेसहारों को दी थी जो सेठ साहूकारों से जीवन यापन के लिए कुछ कर्ज ले लेते थे और तब की सोच के मुताबिक उन्हें हमेशा यह घोर चिंता सताती रहती कि यदि उधार वापस नही किया तो चित्रगुप्त के दरबार में कौन सा मुंह ले के जायंगे -उनकी इसी दुश्चिंता को लक्ष्य कर चरवाक ने उन्हें यह व्यवहारपरक शिक्षा दी की चिंता की कोई बात नही ,मजे से रहो -लोक के बाद परलोक कहाँ होता है सब बकवास है ! ताऊ तुम तो ठीक उसी नीति पर चल रहे हो पर जो नाम तुमने गिनाएं हैं उनमें कुछ भले लोग हैं उनके पैसे वापस कर दो ! और कुछ जिनसे तुम्हे पैसे ले ही लेने थे न जाने किस मुरौवत में मांग नही पाये हो -ऐसे कई साज साज सज्जा के रसूख वाले भी यहाँ हैं जिनके ब्लॉग के प्रथम दर्शन से ही लग जाता है कि अच्छा माल पानी है वहाँ उनसे भी तो कभी कुछ मांगों !

    ReplyDelete
  5. बोतल के जिन्न को जिस तरह समझाया वह लाजवाब रहा जो कि आर्थिक मसलों पर आपकी गहरी पकड दर्शा रहा है।
    वैसे जब यमराज तक की पकड में रह कर भी ताउ अकड रहे हों तो फिर ताउ की धौंस का अंदाजा लग सकता है :)
    उम्दा लेख।

    ReplyDelete
  6. चार्वाक दर्शन में और भी बहुत सी बातें हैं। उस बेचारे को फोकट बदनाम कर रखा है। असली ऋण ले कर च्यवनप्राश खाने वाले तो अब पैदा हुए हैं। घी तो डाक्टर ने बंद कर रखा है।
    चाहे कुछ भी कह लो जी पूंजीवाद की यह उपभोक्तावादी आजादी छीने बिना काम नहीं चलने का। यह उपभोक्तावाद धरती के सब साधनस्रोतों को छीन कर उसे खोखला करता जा रहा है। अब भी न चेते तो फिर खुदा भी दुनिया का मालिक होने से इन्कार करने वाला है।

    ReplyDelete
  7. अरे ताऊ जी हमसे भी तो लिए थे आपने पचास हजार ! उनका तो कोई जिक्र ही नही है ? क्या लौटाने की इच्छा नही है ! :)

    बहुत सामयिक और विचारणीय लेख ! धन्यवाद !

    ReplyDelete
  8. अभी आने वाले समय की डगर मुझे बहुत कठिन नही तो कठिन तो अवश्य ही दिखाई दे रही है ! कुछ समय बाद आपको मानना ही पडेगा की "बहुत कठिन है डगर पनघट की" !
    " sach kha or panghat ke dagar to hmesha hee mushkil hotee hai, aasan kub huee????, aaj ke ye post ekdam different hai.... yhan tau jee kee koee dhgee ke karname nahee hain, bulkee chinta ke lkeeren dekahee dey rhe hain...."

    regards

    ReplyDelete
  9. ताऊ, बिलकुल सही उदाहरण दिया है. अमेरिका में जो लोग पहले आलीशान बंगलों में रहते थे, वे अब खुले में आ गए हैं. सचमुच पाप का घडा फ़ुट गया है.

    ReplyDelete
  10. aap ka lekh bahut hi gahan soch ka parinaam hai--mazaak -mazaak mein bhi itne Gambhir vishay par aap ne jo bhi likha hai bilkul sahi likha hai--agar yun hi aarthik mandi ka daur chalta rahega to
    naa jaane bhavishy mein aur kya hona hai.

    [-aaj ka naya sabak-[नए ताऊ ओबामा ------- और बुढे ताऊ बुश -ha ha ha --hee hee hee :D]

    ReplyDelete
  11. कर्ज़ लेकर घी पिया है, तो चर्बी गलाने के लिए मंदी हंटर लेकर आई है।

    ReplyDelete
  12. आज हमारी बारी है आपसे पचास हज़ार लेने की... मंदिर पे चढ़ाए गये चुरमे के 36 हज़ार काट के बाकी के 14 हज़ार भिजवा दीजिए... अजी हम भी तो आपसे ब्याज नही लेंगे...

    ReplyDelete
  13. आपने तो हद कर दी ताऊजी।....पचास हजार की मामूली रकम लिए इतने परेशान हो रहे है आप?...जब कि शेर कईयों के करोडों स्वाहा कर गया।....वे लोग भी मजे में है।

    ReplyDelete
  14. आपने मजाक मजाक में एक गंभीर समस्या को अच्छे से समझाया है ताऊ. और खास तौर से हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी अपने साथ डुबाएन्गे ...सही बात है कर्जे की ये टोपी ऐसे ही घूमती रहती है पर इसे ऐसे मजेदार ढंग से लिखना कोई ताऊ ही कर सकता है :D

    ReplyDelete
  15. सबसे पहले तो आप एक उत्कृष्ट एवं विचारणीय लेख के लिए बधाई के पात्र हैं
    सच पूछो तो, ताऊ का यह रूप मेरे लिए अकल्पनीए है. कहॉं व्यंग्य रचना और कहाँ ऐसा सारर्गभित लेखन.
    वैसे मेरा भी यही ख्याल है कि "बिना लोन के बन्दा सिर्फ दाल-रोटी ही खा सकता है…चापें या मलाई-कोफ्ते नहीं”

    ReplyDelete
  16. बहुत बढिया उदाहरण दिया है।इस पर अमल कर के देखेगें:)
    आलेख बहुत बढिया है।बधाई।

    ReplyDelete
  17. वाह!! क्या उदाहरण देकर समझाया है आपने :-)

    ReplyDelete
  18. मेरा सोचना है कि पैसा वहां जाता है जहं वह ग्रो (वृद्धि) कर सके। अत: भारतीय अगर ऑन्त्रेपिन्योरशिप दिखायेंगे तो वह यहां आयेगा। अगर वे ऋण ले घी पियेंगे तो वह कहीं और की राह पकड़ेगा। अमेरिका संभलेगा तो पैसा/समृद्धि वहां रुकेगी, अन्यथा नहीं। पर मेरे ख्याल से अमरीकी में बहुत रेजिलियेन्स है - बेवकूफी से बाहर निकलने की।

    आपकी पोस्ट सोचने का बहुत मसाला देती है। ताऊ लण्ठ नही है, ताऊ इण्टेलीजेण्ट प्राणी है!

    ReplyDelete
  19. ये लो हमारे धोबी ने कल हमें लेवरेज का पाठ पढाया था और हम सोच रहे थे पोस्ट ठेलने की और आपने पहले ही ऐसा जोर का समझाया की अब कुछ बचा ही नहीं.
    वैसे ज्ञानजी से पैसा लगता है बड़ी आसानी से मिल रहा है... जरा एजेंट भेजवा दीजिये हम जहाँ बोलेगा साइन कर देंगे :-)

    ReplyDelete
  20. वाकई अभी हालत बहुत चिंताजनक हो गए हैं ! और खराबी इतनी ज्यादा हुई है की जल्दी से सुशार की आशा नही है ! वर्तमान हालात आपने बिल्कुल सहज भाषा में समझाये है ! बिना कोई कठिन टर्म वगरेह का उल्लेख किए बिना ! बहुत धन्यवाद !

    ReplyDelete
  21. बहुत सटीक जानकारी दी आपने ! धन्यवाद !

    ReplyDelete
  22. "असल में दोस्तों, इस बीमारी की जड़ में उपभोक्तावाद का किटाणु घुसा हुआ है ! और इस तरफ़ किसी ने उंगली भी नही उठाई !"

    राजनैतिक स्तर पर जो मीटिंगें बुलाई जाती हैं वे समस्या को हल करने के लिये नहीं, ताऊ जी, बल्कि लोगों को यह यकीन दिलाने मात्र के लिये होता है वे हल कर रहे हैं.

    जनता बेवकूफ होती है. उन्हें हल से अधिक हल की तथाकथित कोशिश से आनंद मिलता है.

    सस्नेह -- शास्त्री

    ReplyDelete
  23. ताऊ बात तो आपने सोलह आने सही कही है और उदहारण भी सही दिया है क्रेडिट कार्ड के जरिये कई लोग इसी तरह की टोपी घुमा रहें है,जिस दिन टोपी घुमनी रुक जायेगी ऐसे लोग तकलीफ में आ जाते है |
    आपने यह बात बहुत अच्छी तरह समझाई है |

    ReplyDelete
  24. बहुत रोचक लेखक...बजा फरमाया कि घर में नहीं दाने और अम्मा चली भुनाने
    पूरे देश का यही तो हाल हो रक्खा है

    ReplyDelete
  25. ताऊ भाई मेने तो कभी पेसे वापिस मांगे ही नही, फ़िर क्यो जता रहा है, असल मे आप ने जिन जिन के नाम लिखे है सभी मेरे ही कर्ज दार है, ताऊ ऎसा कर सारे पेसे इन से बसुल ले, तेरा कर्ज माफ़, साथ मे बसुले पेसो पर भी ३९% तेरा. भाई हमारे पी एम साहब को पता नही हलाल करने से पहले बकरे को खुब अच्छी तरह से नहाला जाता है, खुब आव्भगत की जाती है, ओर यह अमेरिका तो बहुत बडा जल्लद है.
    धन्यवाद मजाक मजाक मे आप ने एक अच्छी पोस्ट लिख दी, बसूली मत भुलना.
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  26. बहुत सार्थक रचना लिखी है आपने...बधाई...
    नीरज

    ReplyDelete
  27. ताऊ
    आपको बधाई पर बधाई .
    आपने इतनी अच्छी बात बताई .
    और भारत भूमि में सावधान
    रहने की अच्छी कला सिखाई.
    हमारे यहाँ एक कहावत थी कि तेते पाँव पसारिये जीतती लम्बी सौर .
    असलियत तो ये है कि इस आचरण[क्रेडिट कार्ड संस्कृति ] के कारण ही दुनिया भर में दिक्कतें हो गयी हैं .

    ReplyDelete
  28. बहुत ही सही और सुंदर विश्लेषण. आभार.

    ReplyDelete
  29. हल्की फुल्की शैली में काफी गम्भीर चर्चा हो रही है यहाँ। मैं तो यहाँ आकर डूब ही गया।

    ReplyDelete
  30. बहुत सटीक

    ReplyDelete

Post a Comment