अहम् सवाल : दोषी कौन

मुम्बई  के आतंकवादी  हमले के बारे में अमेरीकी समाचार पत्रों और टी.वी. चैनलों पर अच्छा खासा कवरेज़ था ! उनके हिसाब से वर्तमान सरकार को आने वाले चुनावों में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है !

 

यहाँ मैं वाल स्ट्रीट जर्नल के सम्पादकीय का जिक्र करना चाहूँगा ! इसमे स्पष्ट रूप से  आर्थिक राजधानी मुम्बई पर हुए हमले के लिए यु.पी.ऐ. सरकार की अक्षमता को दोषी ठहराया गया है और कांग्रेस को आने आले चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है !

 

सम्पादकीय में आगे लिखा गया है की कल प्रधान मंत्री मन मोहन सिंह ने कहा था की दोषियों के ख़िलाफ़ सख्त कारवाई की जायेगी ! और उन्ही की पार्टी कांग्रेस इस मामले में उलजलूल बयान दे रही है ! कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों ने पिछले पाच साल में आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए कुछ नही किया है ! यु.पी.ऐ. सरकार अभी तक इस तरह के हमलो से निपटने में नाकाम रही है और ये उसके लिए अच्छे संकेत नही है !

 

आगे और लिखा गया है की -- जिस देश में आतंक वादी हमले जगह जगह होते रहते हैं, उन्हें रोकने के लिए सरकार ने पाँच सालो में कौन से ऐसे कदम उठाये हैं, जिससे ये हमले रोके नही जा सके ! देश के कई शहरों में बम धमाके हुए है और मुम्बई की घटना ने तो भारत की सुरक्षा एजेंसियों की भी पोल खोल दी है !

पाकिस्तानी एजेंसी ने भारतीय सरकार को पहले ही यह चेतावनी दे दी थी की कराची से कुछ आतंकवादी समुद्र के रास्ते मुम्बई रवाना हो गए हैं , और वो किसी बड़े हमले की तैयारी में हैं, लेकिन भारतीय एजेंसियों ने उस पर ध्यान नही दिया ! और परिणाम स्वरुप मुम्बई पर इतना बड़ा आतंकवादी हमला हो गया !

 

तो ये था वाल स्ट्रीट जर्नल का सम्पादकीय ! अब हम युद्ध युद्ध,  और हम पर हमला होगया,  का राग अलाप  रहे थे ! यहाँ ब्लॉग जगत में भी कहा गया की सब एक मत नही है ! पर मैं ऐसा नही समझता ! सभी में आक्रोश है ! अपनी अपनी स्टाईल में सबने व्यक्त किया है ! कुछ लोगो की भाषा परिष्कृत थी और कुछ मेरे जैसे लंठ भी थे ! भावना सभी की एक ही थी ! 

 

पर हद तो महाराष्ट्र के गृह मंत्री आर.आर. पाटिल साहब ने करदी !  उन्होंने अपनी सरकार का बचाव करते हुए कहा की -- आप इस घटना को पुरी तरह से सुरक्षा एजेंसियों का फेल्योर मत मानिए ! इतने बड़े शहर में ये छोटी मोटी घटनाए तो हो ही जाती है !

 

और आप लोग युद्ध हो गया ..युद्ध हो गया.. चिल्ला रहे हो ? कुछ तो आपको सोचना चाहिए ! जबरन सरकार के पीछे पड़े हो आप लोग ! अब मुम्बई के गृहमंत्री कह रहे हैं तो ग़लत थोड़े ही कह रहे होंगे ?

 

 

इब खूंटे पै पढो :-

 

 

मैंने यह अनुवाद मेरी योग्यता के अनुसार किया है ! अन्ग्रेज़ी, हिन्दी, बंगला और संस्कृत भाषाए मैं कामचलाऊ ही जानता हूँ ! मैं इन भाषाओं का कोई अधिकृत विद्वान् नही हूँ ! पहले भी बिल गेट्स की कुछ पंक्तियों के अनुवाद में एक स्वामीजी मुझे ज्ञान बाँट कर गायब हो गए थे ! और उनको मेल करने पर भी आज तक वापस प्रकट नही हुए !  अत: आपसे निवेदन है की अनुवाद की ग़लती लगे तो सुधार कर पढ़े ! मेरी कोई जिम्मेदारी नही है ! और ना ही अब मैं कोई ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा रखता हूँ !

 


Comments

  1. सुना है 5000 मारने आये थे। दो सौ भी न मार पाये। यह राज्य सरकार की मुस्तैदी के चलते ही तो सम्भव हो पाया।

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  2. कन्‍धार के माफीनामा, और राजीनामा का है अंजाम मुम्‍बई का कोहराम ।
    भून दिया होता कन्‍धार में तो मुम्‍बई न आ पाते जालिम ।
    हमने ही छोड़े थे ये खुंख्‍‍वार उस दिन, आज मुम्‍बई में कहर ढाने के लिये ।।
    इतिहास में दो शर्मनाक घटनायें हैं, पहली पूर्व केन्‍द्रीय मंत्री मुफ्ती मोहमद सईद के मंत्री कार्यकाल के दौरान उनकी बेटी डॉं रूबिया सईद की रिहाई के लिये आतंकवादीयों के सामने घुटने टेक कर खतरनाक आतंकवादीयों को रिहा करना, जिसके बाद एच.एम.टी. के जनरल मैनेजर खेड़ा की हत्‍या कर दी गयी । और दूसरी कन्‍धार विमान अपहरण काण्‍ड में आतंकवादीयों के सामने घुटने टेक कर रिरियाना और अति खुख्‍वार आतंकवादीयों को रिहा कर देना । उसी का अंजाम सामने है । तमाशा यह कि जिन्‍होंने इतिहास में शर्मनाक कृत्‍य किये वे ही आज बहादुरी का दावा कर रहे हैं, अफसोस ऐसे शर्मसार इतिहास रचने वाले नेताओं की राजनीति पर । थू है उनके कुल और खानदान पर ।

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  3. नपुंसकता की गंगा शायद हमारे राजनेताओं से ही निकलती है, और राजनेता जनता से....इसलिये मूल कारण जनता ही है ऐसे लोगों को चुनने में और मंत्री फंत्री बनवाने में। जिनमें संत्री तक बनने की कूवत नहीं वो मंत्री बन बैठे हैं....और ऐसे में यही सब कुछ हो रहा है जो न होना चाहिये था।

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  4. अजी वही तो बात है.. इत्ती छोटी घटना का क्या है? कभी भी फिर से घट सकती है.. क्या करें? इतने बड़े शहर के सभी लोगों पर एक साथ नजर रखना आसान काम थोड़े ही है?

    धन्य पाटिल साहब.. कोई सा भी पाटिल समझ सकते हैं..

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  5. महाराष्ट्र के गृह मंत्री आर.आर. पाटिल ने तो वाकई हद ही करदी | पता नही कोनसी घटना को वो बड़ी मानेंगे | इनसे किसी जिम्मेदारी की क्या अपेक्षा रखें |

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  6. भाई ताऊ ,मैं आपके दुःख ,कंसर्न से वाकिफ हूँ -आशा है इस पूरे घटनाक्रम के बाद आपके इष्ट मित्र परिजनों की खैरियत आपको मिल गयी होगी -जिन पड़ोसी परिवार में इस घटना के चलते दुःख पहुंचा मेरी भावभीनी संवेदनाएं ! आपका अनुवाद बिल्कुल सही हैं -पर अब क्या किया जाय -हाथ पर हाथ बैठे रहा जाय या ब्लॉग लिखते लिखते ही शौर्यगति को प्राप्त हुआ जाय ? हम पाकिस्तान अधिकृत आतंकी ठिकानों पर आक्रमण क्यों नही कर देते ?

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  7. महाराष्ट्र के गृह मंत्री आर.आर. पाटिल साहब पर तो इस्तीफे का दबाव बढ़ रहा है,नहीं तो कांग्रेस डरती है कि लोकसभा के चुनावों पर उनकी बात' का असर दिखेगा.

    स्ट्रीट जर्नल का सम्पादक ने भी ठीक लिखा है. मुंबई पर हुए इस हमले के अलावा देश में इसी साल विभिन्न राज्यों में एक के बाद एक हुए आतंकवादी 'सीरियल हमले ' देखने के बाद और किसी प्रमाण की आवश्यकता है क्या?
    ज्ञान दत्त जी की बात भी गौर करने लायक है-'सुना है 5000 मारने आये थे। दो सौ भी न मार पाये। यह राज्य सरकार की मुस्तैदी के चलते ही तो सम्भव हो पाया।'
    ठीक कहा है--जहाँ इतना आलोचना हो रही है ,इसी सरकार का आर्मी और nsg बुलाने का निर्णय भी तारीफ़ के काबिल है चाहिये कि इस बार निर्णय तेज़ी से लिए गए-आतंकवादी से बातचीत [negotiation] के लिए नहीं बैठे रहे.क्योंकि यह सब जानते हैं कि कोई भी सुरक्षा कर्मी बिना सरकारी हुकुम के बंदूक से गोली नहीं दाग सकता.न ही अपनी जगह से हिल सकता.'ऊपर 'से हुकुम आने में ही घंटे लग जाते हैं.सही कहा न ताऊ जी?
    [माननीय राष्ट्रपति जी विएतनाम के दौरे पर हैं ,उनका कोई बयान सुनायी नहीं दिया.]

    [देश के लिए शहीद होने वालों को मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि.]

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  8. चिंता बिल्कुल वाजिब है. राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी हमें घुन की तरह खाए जा रही है,

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  9. ये तो हम है कि लात खाने के लिये बैठे हुए है,हर कोई ऐरा-गैरा जब मर्ज़ी ठोक कर चला जाता है,और तो और अब तिन तरफ़ से घिरा बांग्लादेश जो अस्तित्व मे ही हमारे कारण आया,वो भी हमारी ऐसी की तैसी कर रहा है,नेपाल से भी ऐसा ही कुछ हो रहा है और नेफ़ा सेक्टर का तो भगवान ही मालिक है। इस बार आतंकी पाक से समुद्री रस्ते से आये,नीचे श्रीलंका की भी नीयत अच्छी नही है,यानी हम चारो तरफ़ से घिरे हुए है और हमारे नेता चैन से बांसुरी बज़ा रहे है।

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  10. भाई ताऊ श्री! अपन तो आज बहौत खुश हैं। आप भी खुश हो जाइए। हम सुरक्षित हैं, आप सुरक्षित हैं। अगले 3-4 महीनों के लिए हम सब को जीवनदान मिल गया है। क्योंकि आम तौर एक धमाके के बाद 3-4 महीने तो शांति रहती ही है। क्या हुआ जो 3-4 महीने बाद फिर हम करोड़ों लोगों में से 50, 100 या 200 के परिवारों पर कहर टूटेगा। बाकी तो बचे रहेंगे। दरअसल सरकार का गणित यही है। हमारे पास मरने के लिए बहुत लोग हैं। चिंता क्या है। नपुंसक सरकार की प्रजा होने का यह सही दंड है।
    पूरी दुनिया में आतंकवादियों को इससे सुरक्षित ज़मीन कहां मिलेगी। सच मानिए, ये हमले अभी बंद नहीं होंगे और कभी बंद नहीं होंगे।
    कयूं कि यहां आतंकवाद से निपटने की रणनीति भी अपने चुनावी समीकरण के हिसाब से तय की जाती है।
    आप कल्पना कर सकते हैं110 करोड़ लोगों का भाग्यनियंता, देश का सबसे शक्तिशाली (कम से कम पद के मुताबिक,दम के मुताबिक नहीं) व्यक्ति कायरों की तरह ये कहता हैकि आतंकवाद पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए एक स्थायी कोष बना देना चाहिए।
    हर आतंकवादी हमले के बाद टेलीविजन चैनलों परदिखने वाला गृहमंत्री का निरीह, बेचारा चेहरा फिर प्रकट हुआ। शिवराज पाटिल ने कहा कि उन्हे इस आतंकवादी हमले की जानकारीपहले से थी। धन्य हो महाराज!आपकी तो चरणवंदना होनी चाहिए.
    लेकिन इन सब बातों का मतलब ये भी नहीं कि आतंकवाद की सभी घटनाओं के लिए केवल मनमोहन सिंह की सरकार ही दोषी है। मेरा तो मानना है कि सच्चा दोषी समाज है, हम खुद हैं। क्योंकि हम खुद ही इन हमलों और मौतों के प्रति इतनी असंवेदनशील हो गए हैं कि हमें ये ज़्यादा समय तक विचलित नहीं करतीं। सरकारें सच पूछिए तो जनता का ही अक्श होती हैं जो सत्ता के आइने में जनता का असली चेहरा दिखाती हैं। भारत की जनता ही इतनी स्वकेन्द्रित हो गई है कि सरकार कोई भी आए, ऐसी ही होगी। हम भारतीय इतिहास का वो सबसे शर्मनाक हादसा नहीं भूल सकते जब स्वयं को राष्ट्रवाद का प्रतिनिधि बताने वाली बी.जे.पी. सरकार का विदेश मंत्री तीन आतंकवादियों को लेकर कंधार गया था। इस निर्लज्ज तर्क के साथ कि सरकार का दायित्व अपहरण कर लिए गए एक हवाईजहाज में बैठे लोगों को बचाना था। तो क्या उसी सरकार के विदेश मंत्री, प्रधानमंत्री और स्वयं को लौहपुरुष कहलवाने के शौकीन माननीय (?)लाल कृष्ण आडवाणी उन हर हत्याओं की ज़िम्मेदारी लेंगे, जो उन तीन छोड़े गए आतंकवादियों के संगठनों द्वारा की जा रही है।
    वाह री राष्ट्रवादी सरकार, धिक्कार है।
    सरकार चाहे अटल बिहारी वाजपेयी की हो या मनमोहन सिंह की, आतंकवाद हमारी नियति है। ये तो केवल भूमिका बन रही है, हम पर और बड़ी विपत्तियां आने वाली हैं।क्यूं कि 2020 तक महाशक्ति बनने का सपना देख रहे इस देश की हुकूमत चंद कायर और सत्तालोलुप नपुंसक कर रहे हैं।

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  11. महाराष्ट्र के गृह मंत्री आर.आर. पाटिल साहब के बेटे , पोते, या घर का कोई मरे उस दिन होगी आम सी घटना, कुत्ता हमारी वोटो पे जीत कर हमारा ही राजा बनता है,
    जब तक हिजाडो की सरकार रहेगी यह सब चला रहेगा, अब होना तो यह चाहिये, जहां भी ऎसा कुछ हो सालो को मार दो, कोई मुकदमा नही, कोई फ़ांसी नही,
    ताऊ हम तो घर मै बेठे बेठे यह सब देख कर इतना गुस्से मै है जिन पर बीती हैओ उन का क्या हाल होगा???
    ओर आप का सवाल दोषी कोन ???
    भाई दोषी हम ही है, हम ने ही इस सरकार को चुनना है अगर पहली दुसरी गलती पर ही हम इस सरकार को चुनोती देते तो इस सरकार के कान हो जाते, अगर हम किसी सरकार को बना सकते है तो उसे नीचे भी उतार सकते है, शान्ति से हडताले कर के, बिरोध कर के धरने दे कर, रोष प्रकट कर के....

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  12. कुछ महिने बाद जब ये वोट मांगने आये तो इन्हे दौडा-दौडा कर जुता फ़ेक फ़ेक कर मारीयेगा !!

    इससे मृत आत्माओ को कुछ शांती मिलेगी !!

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  13. करनाल की संस्था हिफा के निदेशक पीयूष जी का एसएमएस पढ़ें
    यह मेरे मोबाइल पर आया
    आप सभी में बांट रहा हूं किः-

    where is Raaj Thakre ?
    Tell him that 200 nsg commondos from delhi (all north indians) being sent 2 fight the terrorists. So that he and his "Marathi Manus" can sleep peacefully.. Now tell him to ask them to leave Mumbai ! Please send this msg to all indians. So atleast Mr. Raj will get this message somehow.

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  14. ताऊ जी राम राम
    आपका लेख पढ़ कर आपके अन्दर का आक्रोश सामने आ रहा है ,हमारे भी अन्दर गुस्सा भर रहा है।
    नेता अपना वोट खींचने का कोई भी मौका गवाते नहीं है,जब हमारे देश में आतंकी हमला हुआ तो नेता लोग उसपर भी अपनी पार्टी के लिए वोट मांगने से नही कतरा रहे थे अब ऐसे में हमारे देश का भविष्य क्या होगा?....

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  15. जायज आक्रोश है.

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