ताऊ बोल्यो - अरे सत्यानाशियो

आजादी से काफ़ी समय बाद तक

सांपनाथ पार्टी जनता की सेवा करती रही

और चकाचक रस मलाई का

जमकर सेवन करती रही

 

फ़िर बिल्ली के भागों छींका टूटा

और नागनाथ पार्टी ने भी

जनता की सेवा करने का

भरपूर  मजा लूटा

 

कभी डाल डाल कभी पात पात

कभी सांपनाथ कभी नागनाथ

पांच पांच साल की मलाई

दोनो ने मिल बांट कर खाई

 

अबकी बार रामदयाल ने कर दिया लफ़डा

दुबारा नागनाथ को जिता कर, करवा दिया झगडा

विरोधियो के खेमे मे एक ही पद तो है सशक्त

यानि नेता प्रतिपक्ष

 

पिछले बार नेता प्रतिपक्ष बुआजी थी

अबकी बार चार सांप और बिल मे से

निकल कर आगये

और नेता प्रतिपक्ष के दावेदार हो गये 

 

हमारी पार्टी प्रजातान्त्रिक है

अरे क्या हुआ हम हार गये

मुख्यमन्त्री ना सही

नेता प्रतिपक्ष तो हम सर्व सम्मति से चुन लेंगे

 

ताऊ बोल्यो - अरे सत्यानाशियो

अगर थारै अन्दर सर्व सम्मति होती तो

आज नेता प्रतिपक्ष की जगह

मुख्यमन्त्री नही चुन रहे होते ?

 

 

  इब खूंटे पै पढो :-smiley4

 

 

  ताऊ एक   बार एक  मुशायरे में चला गया ! 
  एक पतला सा लखनवी शायर  खड़ा हुआ !
  मंच पर  आकार  शायरी  पढ़ने  लगा --


  एक तरफ़ तुम बैठे .. एक तरफ़ हम बैठे ..
  बीच में हमारे चिलमन ..

  बीच में हमारे चिलमन ..


  एक बार तुम झांको  ...एक बार हम झांके  ..
  फ़िर तुम झाको ... फ़िर हम झाके ..
  फ़िर तुम झाको ... फ़िर हम झाके
.

 

  फ़िर तुम झाको ... फ़िर हम झाके ..
  फ़िर तुम झाको ... फ़िर हम झाके


  शायर ने कई बार यही लाईने  दोहराई बार बार !

  ताऊ को  बार बार यही लाईने  सुनते सुनते गुस्सा आ गया !
  और शायर इन लाइनों को पढ़ने के सिवाये आगे बढ़ने को तैयार नही !
  अब ताऊ गुस्सा खाके पीछे से  उठ कर मंच के पास आकर खडा हो गया !

  और दांत पीसकर  धीरे से बोला -  की अब की बार बोलने दे  इस शायर के

  बच्चे को यही लाइन !


  शायर फ़िर बोला -

  एक बार फ़िर तुम झाको .. एक बार फ़िर हम झाके ..
  तुम फ़िर से झाको .. हम फ़िर से झाके !


  इब ताऊ  बोल्या, तेज आवाज में -- आग लगा दो ऐसे  चिलमन में...

  ना  तुम झांको ..ना  हम झांके !

 

Comments

  1. इब ताऊ तुम लाख कहो ये ताका झांकी तो चल रही है और चलती रहेगी ! और इतना ही सुंदर है ,प्रेय है !

    ReplyDelete
  2. वाह ताऊ, वाह वाह ताऊ.

    ReplyDelete
  3. जय राम जी की ताऊ, थारी रागनी सुन के आनंद आ गया भाई. एकाधी और सुणन ताईं मिल जाती तो घणा आनंद और आ जाता.

    ReplyDelete
  4. अरे वाह वाह ताऊ कविता में स्टाफ के आदमी हो गए :)

    ReplyDelete
  5. ताऊ बोल्यो - अरे सत्यानाशियो
    अगर थारै अन्दर सर्व सम्मति होती तो
    आज नेता प्रतिपक्ष की जगह
    मुख्यमन्त्री नही चुन रहे होते ?
    वाह ताऊ, व्यंग्य के साथ क्या बढ़िया नसीहत दी है |

    ReplyDelete
  6. वाह ताऊ....
    दोनो आइटम जानदार, शानदार ,धारदार थे....
    आनंदम् आनंदम्....

    ReplyDelete
  7. सही कहा ताऊ.. ये सब दिखावा है..

    ReplyDelete
  8. laga do aaj chilman mein, na tum jhanko na ham jhankein...
    sahi likha taau. aur party ki baat to ghani chokhi hai.
    :D

    ReplyDelete
  9. इब ताऊ बोल्या, तेज आवाज में -- आग लगा दो ऐसे चिलमन में...
    ना तुम झांको ..ना हम झांके !

    ""हा हा हा हा हा बहुत शानदार और जानदार ....लकिन आग लगी क्या चिलमन मे...और ताका झांकी का क्या हुआ????"

    regards

    ReplyDelete
  10. baut hi badhiya post:) jhaka jhaki:)

    ReplyDelete
  11. बहुत मजेदार .चिलमन भी और राजनीति पर व्यंग भी ..

    ReplyDelete
  12. आग लगा दो ऐसे चिलमन में...
    ना तुम झांको ..ना हम झांके !
    वाह जी वाह क्या बात हैं। मजा आ गया।

    ReplyDelete
  13. आज तैं खूंटा जमीं जम्म कै बाध दिया.
    बहुत खूब

    ReplyDelete
  14. सर्व सम्मति तो हो ही नहीं सकती जी. खून्टे पे तो हम भी टॅंग गये. आभार.

    ReplyDelete
  15. बढ़िया कविता और चिलमन । जरा शब्दकोष देखना पड़ेगा ।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  16. अगर थारै अन्दर सर्व सम्मति होती तो

    आज नेता प्रतिपक्ष की जगह

    मुख्यमन्त्री नही चुन रहे होते ?

    यह सही कह दिया आपने.

    और चिलमन को आग लगाने वाली बात तो सुभान अल्लाह...

    ReplyDelete
  17. बहुत बढ़िया..

    नेता प्रतिपक्ष...नेता प्र तिपक्ष.
    चिलमन में बहुत खूब आग लगाई ताऊ जी...

    ReplyDelete

  18. यह सर्वसम्मत्ति की चिलमन है ही ऎसी, कि आग लगा देने का मन करे ..
    काश.. जनता इस सर्वसम्मति के चिलमन के भीतर छिपी कुटिल राजनीति के दर्शन भी कर पाती !
    और, अपुन के मुलुक का हो रैला है.. जय सिया राम !

    ReplyDelete
  19. sir,

    main pahli baar aaya aapke blog par ..

    bahut si post padhi , aur bahut accha laghha.

    aap bahut accha likhte hai ..

    badhai

    kabhi samay mile to mere blog par aayinga .

    dhanyawad.

    vijay
    http://poemsofvijay.blogspot.com/

    ReplyDelete
  20. अरे ताऊ बात तो बहुत काम की कह दी....
    अरे सत्यानाशियो
    अगर थारै अन्दर सर्व सम्मति होती तो
    आज नेता प्रतिपक्ष की जगह
    मुख्यमन्त्री नही चुन रहे होते ?
    बाकी चिलमन आज कल होता ही कहां है, सब कुछ खुलम्म खुला, इस लिये शायर अटक गया, किस जब चिलमन ही नही तो ..... ओर रही सही आग ताऊ ने लगा दी.
    राम राम जी की

    ReplyDelete
  21. जनतंत्र में मतभेदों के लिए स्थान होता है, इस लिए सर्वसम्मति के लिए कोई स्थान संभव ही नहीं है। लेकिन बहुमत का आदर करना जनतंत्र की विशिष्ठता है उसे स्वीकार करना चाहिए। चुनाव के पहले से मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तय कर लेना वास्तव में जनतंत्र विरोधी बात है। जनता ने अपने प्रतिनिधि ही नहीं चुने और आप ने मुख्यमंत्री चुन लिया?
    आप ने सर्वसम्मति के छद्म पर अच्छा व्यंग्य किया है।

    ReplyDelete
  22. फ़िर तुम झाको ... फ़िर हम झाके ..
    फ़िर तुम झाको ... फ़िर हम झाके .

    -----------
    ताक-झांक ही चल रही है। आगे कुछ प्रोग्रेस न दीखती!
    मैं देश की कह रहा हूं!

    ReplyDelete
  23. क्या खूब चिलमन से सटे बैठे हो
    साफ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं-:)

    ReplyDelete
  24. बहुत लगा बहुत सुंदर!

    ReplyDelete
  25. त्रिशँकु की तरह
    ना आसमाँ मिला
    ना ही स्वर्ग ना व्योम
    फिर गुस्सा आयेगा ही ना :)

    ReplyDelete
  26. राजनीति की पर्देदारी या पर्दे की राजनीति?

    ReplyDelete
  27. ताऊ के आग लगाने के पहले फ़ायरब्रिगेड बुला ली जाये।

    ReplyDelete
  28. एक दम जबर्दस्त व्यंग है. वे मलाई खा रहे हैं, जनता भूखी, नंगी, लुटी जा रही है.

    स्थिति बदल सकती है यदि जनता में एक नैतिक चेतना आ जाये तो. सोच सोच कर मन निराश हो जाता है, लेकिन क्या मालूम प्रभु क्या कुछ कर दें!!

    किसने सोचा था कि तोपधारी अंग्रेजों को थोडे से क्रांतिकारी और एक कौपीनधारी मिलकर भगा देंगे! ऐसे ही एक परिवर्तन की जरूरत है. इतना अंतर है कि अब देशी लुटेरों को भगाना है.

    क्या मालूम कल को इसी तरह कोई कौपीनधारी फिर से जनमानस को छू ले!!

    सस्नेह -- शास्त्री

    ReplyDelete
  29. ताऊ की दोनों ही बातें सही और सटीक । चुनाव से पहले मुख्‍यमन्‍त्री घोषित कर देना सचमुच में लोकतन्‍त्र को आघात पहुंचाना है । इसी के समानान्‍तर यह भी है कि विधायकों की पसन्‍द को ठेलकर अपनी पसन्‍द का मुख्‍यमन्‍त्री थोपना भी उतना ही अलोकतान्त्रिक है ।

    ReplyDelete
  30. बहुत बढ़िया आग लगाई है आपने ! और सांप और नाग नाथों का तो ये धर्म बन गया है.

    ReplyDelete
  31. त्रिशँकु की तरह
    ना आसमाँ मिला
    ना ही स्वर्ग ना व्योम
    फिर गुस्सा आयेगा ही ना.........
    अरै ताऊ.........तू तो जाना सा ही कि के म्हारे हरयाणा मा ज्यादा ताका-झाकी को हश्र के होवै स............तो ताऊ इणा की बात मत ना किया कर तू.....जो मैं ताई नै बोल दूँ के तू के के करतो डोला सा....तो ताई तेरो के करसी....तू यो सोच ले भाई....ईब और के कहूँ....तू बातां से तो समझदार ही मालूम लागै सय....अरै ताऊ.. समझबूझ के चाल....जमानो ना...भोत ख़राब सय..........सच्ची.............!!

    ReplyDelete
  32. इब ताऊ बोल्या, तेज आवाज में -- आग लगा दो ऐसे चिलमन में... ना तुम झांको ..ना हम झांके !


    हा....हा..गजब ताऊ गजब

    ReplyDelete

Post a Comment