"ताऊ" साप्ताहिक पत्रिका अंक - ७

प्रिय भाईयो, बहणों, भतीजो और भतीजियों, सबनै सोमवार सबेरे की घणी रामराम. और ताऊ साप्ताहिक के सातवें अंक मे आप सबका घणा स्वागत.

 

जैसा कि आप सब जानते ही हैं कि हमारे घणे प्रिय भतीजे और आशू कवि श्री विवेक सिंह ने परसों बसंत पंचमी के दिन अपनी सौ पोस्ट पूरी कर ली है, इस बात की घणी बधाई.

 

 

और अब आईये आपको मिलवाते हैं हमारे हर दिल अजीज श्री विवेक सिंह से

 

 

 

VIVEK ताऊ पहेली ३ के प्रथम विजेता श्री विवेक सिंह जी से हमने प्रार्थना की थी एक छोटे से साक्षात्कार की. उन्होने बडी ही विनम्रता पुर्वक कहा कि जैसे ही फ़ुरसत मिलती है मैं एक दो दिन मे ही आपको बुलवाता हूं.

 

उन्होने हमको अगले दिन सुबह ही सुबह फ़ोन करके बुलवा लिया और अंधे को क्या चाहिये? दो आंख. सो हम भी तुरंत पहुंच गये. अंदर बैठ गये और तब तक चाय नाश्ता आगया.

 

हमने सवाल पूछने से पहले ही उनको आश्वस्त कर दिया था कि हम उनसे सिर्फ़ तीन सवाल ही करेंगे, मतलब ज्यादा समय नही लेंगे उनका.

 

सवाल : विवेक जी, आप अपने जीवन की कोई एक अविस्मरणिय घटना हमारे पाठकों को बतायें.

 

उत्तर- . वैसे तो अविस्मरणीय घटनाएं इतनी हैं कि एक किताब ही बन जाए . और मजे की बात यह कि हम पाठकों से कभी न कभी बता भी देंगे . पर यहाँ तो हम ब्लॉगिंग से अपनी जान पहचान को ही एक अविस्मरणीय घटना के रूप में बताना चाहेंगे .

वैसे इसे दुर्घटना भी कहा जा सकता है क्योंकि यह पहले से प्रायोजित नहीं थी और इससे हमारे गृहमंत्री को एक और ताना देने का बहाना मिल गया है .

हमने गूगल बाबा पर ऐसे ही 'हिन्दी' शब्द डाल कर कुछ हिन्दी का सामान पढना चाहा  कि उन्होंने हिन्दी चिट्ठाजगत धडाधड महाराज में घुसा दिया हमें .

 

 

सवाल : आपकी रचनाओं मे एक व्यंग और मस्ती दिखाई देती है. इसके पीछे कोई विशेष कारण? 

 

उत्तर - . हमारी रचनाओं में आपको व्यंग्य/मस्ती दिखाई देती है यह जानकर अतिप्रसन्नता हुई . दरअसल हम लिखना तो ज्ञानदत्त जी से भी अच्छा चाहते हैं पर यही सब लिख जाता है . कुछ और शायद हमें आता नहीं . अब इसे लोग व्यंग्य/मस्ती समझें तो हमारा सौभाग्य है . 

 

सवाल : ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के पाठकों को कोई संदेश देना चाहेंगे?

 

उत्तर -  .  ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के पाठकों को संदेश हम क्या दें ? हमारे पास संदेश होता तो अब तक पचा पाते हम ? वैसे संदेश तो दूर वालों को भेजें . यहाँ तो सब एक क्लिक दूर हैं . 

 

सवाल : आप लोगो की अक्सर बहुत मौज लेते पाये जाते हैं?

 

उत्तर -. हमने मौज नाप तोलकर कभी नहीं ली . अगर किसी से ज्यादा ले ली हो तो वह हमसे वापस लेने के लिए स्वतंत्र है .  क्योंकि लोग हमसे मौज नहीं लेते इसलिए हमने सोचा इनके पास पहले से ही हमसे ज्यादा मौज हैं . इसलिए हम उनसे ले लेते हैं . 

 

सवाल - विवेक साहब, बस एक आखिरी सवाल?

 

उत्तर -- आपने तीन सवाल का बोलकर चार तो पहले ही पूछ लिए . अब आप कहेंगे कि अपना फोटू खिंचवा लो. तो  फोटू आप हमारे ब्लॉग से लगा लें. 

अभी हमने सिर को चिकना करवाया हुआ है . उसे जनता को फ्री फंड में नहीं दिखाएंगे . क्या पता चन्द्रयान चाँद की बजाय हमारी चाँद पर उतर गया तो .

 

सवाल - अजी फ़ोटो तो हम लगा ले्गें. बस थोडा सा आपके निजी जीवन के बारे मे, हमारे पाठकों को कुछ बताईय़े.

 

उत्तर - निजी जीवन के बारे में : निजी जीवन में मैं स्वयं को बहुत भाग्यशाली मानता हूँ . मैं अलीगढ जिले के एक छोटे से मगर प्यारे से गाँव  'छोटी बल्लभ' से हूँ .

हमारा परिवार किसान परिवार है . दरअसल यह परिवार जो अब लगभग तीन सौ लोगों का हो गया है एक ही बाबा का वंशज हैं जो भरतपुर जिले के नाहरौली गाँव से आकर यहाँ बस गए थे .

हम लोग सिनसिनवार जाट हैं . और बाबा की नवीं पीढी तक परिवार की एकता अटूट बनी हुई है . हमारे यहाँ किसी भी तरह के अंधविश्वास के झाँसे में आए बिना मौज लेते हुए जीने का रिवाज सा है .

 

सवाल : जी, मौज लेते हुये  बहुत कम लोग ही जी पाते हैं. बडी खुशी हुई कि आप लोग आज के जमाने मे भी मौज लेते रहते हैं यानि मौज लेना आपकी खानदानी आदत मे शुमार है. कुछ आपके भाई बहनों के बारे मे बतायेंगे?

 

उतर :  घर में हम तीन भाई और चार चचेरे भाई हैं . एकमात्र बहिन हैं  जो हममें सबसे बडी हैं . छोटे भाई दोनों गाँव में ही मौज लेते हैं . और मैं इधर उधर भटककर ज्यादा पढने के परिणामों का विश्लेषण करता रहता हूँ . कभी गावँ जाता हूँ तो लगता है नौकरी छोडकर यहीं रह जाऊँ .

 

सवाल - कुछ आपकी शिक्षा, शादी और बच्चॊं के बारे में?

 

उत्तर - मैंने हाईस्कूल के बाद केमिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया और भिवाडी में SRF में काम किया . उसके बाद चेन्नई में CPCL की रिफाइनरी में काम किया . सम्प्रति इंडियन ऑइल की पानीपत रिफाइनरी में काम करता हूँ . रिफाइनरी की टाउनशिप में ही रहता हूँ .

शादी तो नौकरी लगने से पहले ही हो गई थी . अब तो आने वाली 12 मई को एक दशक पूरा होने को है . दो लडके हैं . बडा अनन्त दूसरी क्लास में और छोटा सनत नर्सरी में पढता है .

नौकरी लगी पर पढाई न छूटी . इण्टरमीडिएट किया , B.A. किया , M.A. किया . आईएएस बनने के चक्कर में . जब अकल आई तो सब छोड दिया . अब A.M.I.E. करने में लगा हूँ . ऊपर से यह ब्लॉगिंग की लत लग गई है .

 

सवाल : बस आखरी एक सवाल है. ब्लाग जगत मे आप पर भी ताऊ होने का शक किया जाता है? कहां तक सच है?

 

उत्तर :  ताऊ के बारे में : हाँ मैं अब तक कम से कम तीन बच्चों का ताऊ बन चुका हूँ .और आशा करता हूँ कि भविष्य में मुझे ताऊ कहने वालों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढती ही जाएगी .

 

हमने कहा कि ये हमारे सवाल का जवाब आप टाल रहे हैं. लगता है आप बताना नही चाहते. कोई बात नही.

आपकी बातो से हमको ये तो लग ही गया कि आप पर ताऊ होने का शक कुछ हद तक सही है. यानि ताऊओं के सारे गुण आपमे मौजूद हैं.

अब एक आखिरी सवाल - आप एक अच्छे कवि हृदय इन्सान हैं तो हमारे पाठको के लिये कोई एक आपका कवितामय संदेश देंगे तो हमारे पाठकों को बहुत अच्छा लगेगा.

 

उत्तर :  जी लिजिये ये सुनिये कविता.

 

 

 

      महापहेली ताऊ की, करती रहे कमाल .

      आप पहेली जीतकर, होते रहें निहाल ..

      होते रहें निहाल , सफल यह आयोजन हो

      नए नए आयाम जुडें नित हर्षित मन हो

      विवेक सिंह यों कहें, बुराई क्या ताऊ की

      लिखते अपना ब्लॉग न खोली भैंस काऊ की ..

 

 

 

 

तो साहब यह साक्षात्कार करते २ दोपहर हो चुकी थी. श्रीमती विवेक सिंह ने बडे आग्रह पुर्वक हमे भोजन तैयार होने का कहा और बडे आग्रह्पुर्वक भोजन करवाया. ऐसा सुस्वादू भोजन बहुत समय बाद हमें नसीब हुआ था. इस परिवार से मिलकर और मीठी यादों को सहेजते हुये हमने वहां  सिंह परिवार से विदा ली.

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                             प्रथम भाग - पर्यटन खंड :-

 

 

जैसा कि आप जान ही गये हैं पहेली का चित्र दोलताबाद फ़ोर्ट का है. पाठकों मे सु. सीमाजी, सु. अल्पना जी, गुरुदेव समीर जी, राज भाटिया जी और दीपक तिवारी साहब ने काफ़ी सारी जानकारी पाठकों को दी है.

 

कुछ चित्र इस किले के आपको दिखाते हैं.

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निजी रुप से हमने यहां की ४/५ बार यात्रा की है. इस चित्र से आपको समझ आ रहा होगा कि ये अजेय दुर्ग क्यों कहलाता था? जिस पहाडी पर ये निर्मित है उसके चारों तरफ़ पानी की खाई है. और बिकुल सीधी खडी चट्टानों पर बना है

 

 

 

 

 

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किले का मुख्य दरवाजा, जहां से आपको चांद मीनार और पूरे दुर्ग का विहंगम दृष्य  दिखाई दे रहा है. यह मीनार काफ़ी  उंची है. और एक बार हम भी इस पर चढ चुके हैं.

 

असल मे ओरंगाबाद के हमारे मेजबान भी हमारे साथ थे. उन्होने हमे कहा कि इस मीनार पर चढ कर ये किला छोटा सा दिखाई पडता है. यानि कि किले से उंची यह मीनार है. और किले से यह मीनार छोटी दिखती है. हमारे यह कहने पर कि ऐसा संभव नही है. तब वो बोले कि बिल्कुल ऐसा ही है. और हम इस मीनार पर चढ गये. पर बाद मे मालूम पडा कि उन्होने हमको इस मीनार पर चढाने के लिये झूंठ बोला था. पर जो दृष्य इस मीनार पर से दिखे वो शानदार थे. और फ़िर दुर्ग पर तो चढना ही था.

 

 

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इस दुर्ग पर आप जब चढना शुरु करते हैं, तब चारों तरफ़ ऐसी तोपें सुरक्षा के लिहाज से रखी हुई हैं.

 

 

 

 

 

 

 

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इन तोपो पर इस तरह बैठना भी एक रोमांच से कम नही है. आप अगर कभी जायें तो जरा संभल कर बैठे. उपर से नीचे इतनी अधिक हाईट है कि नीचे देखते ही चक्कर आ सकते हैं. जरा संभलके.

 

 

 

 

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बरसात के दिनों मे चारों तरफ़ हरियाली का साम्राज्य रहता है. आप जब ओरंगाबाद से एल्लोरा जायेंगे तब यह दुर्ग बीच मे पडेगा. अगर आपको इस दुर्ग पर चढना है तो हमारी सलाह है कि आप सिर्फ़ एक दिन यहीं के लिये रखें. दुसरे दिन आप एल्लोरा जायें.  वहा से थोडी दूर पर भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग गृशनेश्वर महादेव है. वहां के दर्शन कर सकते हैं.

 

 

 

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इस दुर्ग की चोटी पर एक भुलभुलैया है. जो वाकई चमत्कृत कर देती है. गाईड के अनुसार यह लखनऊ जैसी ही है. अपने साथ पीने का पानी, खाना और एक टार्च जरुर ले जायें. बीच रास्ते मे कुछ जगह आपको घुप अंधेरी सुरंगों से होकर गुजरना पडेगा. तभी आप दुर्ग की भुलभुलैया यानि शिखर तह पहुंच पायेंगे. (दुर्ग की चोटी से लिया गया एक चित्र. )

 

 

 

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यह शिलालेख है जो दुर्ग में लगा हुआ है. यह बहुत ही ऐतिहासिक जगह है. पास मे ही एल्लोरा की गुफ़ाएं है.

 

आप अगर घूमने के शौकीन हैं तो आप यहां अवश्य जा सकते हैं. आखिर घुमुंतुओं को अजन्ता,एल्लोरा, बीबी का मकबरा और यह किला घुमने को मिल जाये तो और क्या चाहिये? 

 

आपको यहां जाकर अफ़्सोस नही होगा बल्कि अफ़्सोस इस बात का होगा कि हम अब तक यहां क्यों नही आये?

 

 

 

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दौलताबाद से ११ किलोमीटर की दुरी पर यहां आप आशुतोष त्रिपुरारी शिव के दर्शन गृश्नेषवर महादेव के रुप में कर पायेंगे.

इस मंदिर  का भी जिर्णोद्धार प्रात:स्मर्णिया माता अहिल्याबाई होल्कर द्वारा किया गया था.

तो अब ये भाग यहीं समाप्त करते हैं और चलते हैं हमारे अगले भाग यानि पहेली - ७ के विजेताओं से मिलवाने के कार्यक्रम में.

 

 

 

 

 

 

 

                             द्वितिय भाग  - पहेली विजेता खंड :-

 

 

 

 प्रकाश गोविन्द said... 

मेरा जवाब है :
दौलताबाद किला का मुग़ल पैवेलियन दौलताबाद
दौलताबाद महाराष्ट्र का एक शहर है । यह अहमदनगर जिले में स्थित है ।

January 31, 2009 10:36 AM

 

घणी बधाई प्रथम स्थान के लिये. सर्वाधिक अंक प्रात किये १०१.

तालियां..... तालियां..... तालियां..... जोरदार तालियां.....      

२. seema gupta said...

ताऊ जी लाक कर लो जी
Daulatabad Fort, nr Aurangabad
Regards

January 31, 2009 11:13 AM  

अंक १००

३. शुभम आर्य said...

ताऊ ये तो देवगिरी फोर्ट है दौलताबाद में |
Daulatabad fort just 13 km. from Aurangabad. Maharastra

January 31, 2009 12:01 PM 

अंक ९९

४. वरुण जायसवाल said...

दौलताबाद किला है भाई औरंगाबाद के निकट , महाराष्ट्र |

January 31, 2009 12:07 PM

अंक ९८

५. Ashish Khandelwal said...

ताऊ.. भतीजे का प्रणाम स्वीकार करो.. .ये दौलताबाद का किला है, जो औरंगाबाद के नज़दीक है। ज्यादा जानकारी अगली टिप्पणी में दे रहा हूं।

January 31, 2009 1:10 PM

अंक ९७

६. अल्पना वर्मा said...

Daulatabad Fort, near Aurangabad
details agle comments mein

January 31, 2009 2:19 PM

अंक ९६

७. Pt.डी.के.शर्मा"वत्स" said...

ताऊ पुराना जवाब कैसिल कर दियो.
नया जवाब है "दौलताबाद का किला"

January 31, 2009 2:29 PM

अंक ९५

८. Udan Tashtari said...

फाईनल जबाब:
दौलताबाद किले का मुख्य महल, औरंगाबाद.

January 31, 2009 2:43 PM

अंक ९४

९. शाश्‍वत शेखर said...

नमस्कार ताऊ,
सीमा जी से बातचीत अच्छी थी|
यह दौलताबाद किले की तस्वीर है जो औरंगाबाद में है| इसे देवगिरी भी कहते हैं|जो फोटो आपने लगाई है वो मुग़ल pavilion है|

January 31, 2009 2:46 PM

अंक ९३

१०. राज भाटिय़ा said...

ताउ यह है दौलताबाद महाराष्ट्र, मुहम्म्द बिन तुगलक़ , अहमदनगर, Daulatabad Fort. यह लो जबाब

January 31, 2009 4:21 PM

अंक ९२

११. दीपक "तिवारी साहब" said...

ताऊ, ये ले जवाब संभाल. ये ओरंगाबाद से एल्लोरा जाते समय रास्ते में पङता है, दोलताबाद, वहां का किला है. और इसके पास ही खुलताबाद है जहां ओरंगजेब साहब को उनकी बीबी की कब्र के पास ही दफनाया गया है. कहते हैं इस मजार पर जो कोई बेटा-बेटी होने की मन्नत मांगता है वो पुरी होती है.

और सुनले इसी किले के गेट पे चंद मीनार है. और ये करीब ७० मीटर उंची है, मैं जवानी में इस पर चढ़ चुका हूँ
.

और इस किले की चोटी पर भी तिन बार चढ़ा हूं. वहां एक भूलभुलैया है . वहां बड़ा मजा आता है.

मोहाम्मद तुगलक यानी जिनके नाम पर ये कहावत पड़ी है की ये क्या तुगलकी फरमान हैं. उन्होंने यहां राजधानी शिफ्ट कर ली थी. वैसे ये बहुत ही सुरक्षित दुर्ग था. पर वो हमारे कहने से वापस चले गए थे. ये अंदर की बात है.:)

अब फोकट में इससे ज्यादा जानकारी नही दे सकता. कुछ इनाम विनाम देवे तो और बता दूंगा.

एल्लोरा से दस किलोमीटर आगे ग्रुश्नेश्वर महादेव का ज्योतिर्लिंग है, हम वहां हर साल पूजा करने जाते हैं अगस्त में. तब ये सब कुछ रास्ते में पङता है.

January 31, 2009 4:44 PM

अंक ९१

१२. मोहन वशिष्‍ठ said...

ताऊ जल्‍दी से मेरा जवाब लिख लो वरना मैं भूल जाउंगा
यह है
Mughal Pavilion daulatabad
मुगल पवेलियन दौलताबाद
ताऊ थोडा मात्रा की गलती हो सकती है तो नंबर मत काटना

January 31, 2009 5:12 PM

अंक ९०

१३. दिलीप कवठेकर said...

ये औरन्गाबाद का किला है.
सीमाजी का इंटर्व्यू बढिया रहा.

January 31, 2009 5:26 PM

अंक ८९

१४. रंजना [रंजू भाटिया] said...

दौलताबाद फोर्ट..औरंगाबाद
दौलताबाद औरंगाबाद से 13 किमी की दूरी पर स्थित है. जो देवागिरी के रूप में जाना जाता था यह फोर्ट, एक पहाड़ी के ऊपर एक शानदार 12 वीं सदी के किले खड़ा है.,यह एक उत्कृष्ट वास्तुकला का नमूना है , महाराष्ट्र में कुछ अजेय किलों में से एक है.
जामा मस्जिद, भारतमाता मंदिर है, चांद मीनार, हाथी टैंक और 'चीनी महल' या चीनी पैलेस किले के अंदर महत्वपूर्ण स्मारक हैं...

January 31, 2009 5:31 PM

अंक ८८

१५.  Tarun said...

ताऊ पहले वो जो हैडिंग में दिया है, यानि पहेली का उत्तर ये है दौलताबाद फोर्ट जो कि औरंगाबाद के पास है।

साक्षात्कार के बारे में, सीमाजी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा, बहुत सी नयी बातें पता चली, ये उनका ही कमाल है कि वो इन सब चीजों के लिये कहाँ से वक्त निकाल लाती हैं।

मानना ना मानना तो लट्ठ और भैंस वाले ताऊ के हाथ में है जैसा पिछली टिप्पणी के जवाब में इंगित भी किया था लेकिन फिर भी कह रहे हैं कि इन दोनों बातों की खिचड़ी ना खिलाओ। शनिवार को पहेली, रविवार को साक्षात्कार या सोमवार को पहेली के उत्तर के साथ।

January 31, 2009 7:32 PM

अंक ८७

१६. makrand said...

अब मिल गया जी इसका पक्का ठीकाना. ये ओरंगाबाद से एल्लोरा के बीच दोलताबाद का किला है. और इसके प्रवेश द्वार पर एक बहुत उंची सी मीनार है.

January 31, 2009 9:33 PM

अंक ८६

१७.  रंजन said...

ताऊ..
फिर नकल मार रहा हूँ.. क्या करुं आपने रिस्लट से पहले ही पेपर आउट कर दिया..
सब कह रहे है तो मैं भी कह देता हूँ.. ये है "दौलताबाद का किला" ओरंगाबाद के निकट..

और detail ये रही.. वहीं से जंहा से आपने फोटो ली है
"Situated 13 kms from Aurangabad, this is the strongest fort in Deccan. Known originally as Devagiri by the Yadavs it was built in 11 century AD and was captured by Alah-ud-din Kilji by treachery. This fort was made famous when Muhammud-ibn-tughlaq tried to move his capital here from Delhi. It was this insane migration that brought islam to the south and changed the demography of the Deccan."

ताऊ ये जबाब भी केंसल कर दो.. नकल में मजा नहीं आया.. वैसे ताऊ अगली बार उत्तर रिस्लट के साथ ही देना.. थोडी देर और ढुढता.. शायद मिल ही जाता..:(.

January 31, 2009 10:01 PM

अंक ८५

१८. नितिन व्यास said...

सीमा जी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा ! फोटो तो दौलताबाद के किले का ही लगता है

January 31, 2009 10:03 PM

अंक ८४

१९. दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi said...

ताऊ जी, अभी अभी छत्तीसगढ़ से लौटा हूँ। पर पहेली देखने का लालच था सो यहाँ आ गया।
यह दौलताबाद का मुख्य महल है जी।

February 1, 2009 12:14 AM

अंक ८३

२०. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

जवाब तो सीमा जी ने दे ही दिया है। दूसरे अभ्यर्थी भी वही जवाब दुहरा चुके हैं। इसलिए अब मेरी ओर से भी यही लॉक किया जाय।
सीमा जी के हम तो पहले से ही प्रशंसक हैं। बातचीत पढ़कर और गाढ़ा रंग चढ़ गया है। शायद दीवानगी की हद तक :)

February 1, 2009 12:25 AM

अंक ८२

२१. Smart Indian - स्मार्ट इंडियन said...

मुहम्मद बिन तुगलक की राजधानी दौलताबाद (देवागिरी) का मुख्य किला.

February 1, 2009 9:27 AM

अंक ८१

 

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 निम्न सभी सभी भाई, बहनों, भतीजों और भतिजियों का आभार, जिन्होने किसी ना किसी रुप मे यहां आकर हमारा हौंसला बढाया.

Ratan Singh Shekhawat , योगेन्द्र मौदगिल , अनूप शुक्ल , Arvind Mishra ,

Pratap , विवेक सिंह , P.N. Subramanian , लावण्यम्` ~ अन्तर्मन् , SHASTRI ,

 

संगीता पुरी , GYAN DUTT PANDEY , ANIL PUSADKAR , JAYAKA ,

 

DILIP GOUR , संजय बेंगाणी , डॉ .अनुराग , PURNIMA , दिगम्बर नासवा ,

 

परमजीत बाली , JITENDRA , गौतम राजरिशी , बवाल , NIRMLA KAPILA ,

 

MADARI , SATYAANASI.COM , PILURA , और  सुशील कुमार छौक्कर 

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                   तृतिय भाग - पाठकों द्वारा दी गई विविध जानकारी

 

 

आईये इस भाग मे हम देखते हैं कि दोलताबाद के किले के संबंध मे हमारे माननिय पाठको ने क्रमवार क्या जानकारी दी है? 

हमने जानकारी देने का काम पाठको पर ही छोड रखा है, इस काम मे अभी तक सु.अल्पना वर्मा जी और सु.सीमा गुप्ता जी हमारे को बहुत महत्वपुर्ण जानकारियां देती आई हैं.

इस अंक मे गुरुदेव समीर जी, आशीष खंडेलवाल जी और दिलिप कवठेकर जी ने भी अच्छी जानकारी दी है. नीचे क्रमश: हम उन्हीं के शब्दों मे पूरा विवरण दे रहे हैं.

 

 

 seema gupta said...

Daulatabad Fort
दौलताबाद औरंगाबाद से 13 km की दुरी पर स्तिथ है. देवागिरी नाम से जाना जाने वाला १२ century का ये शोभायमान किला एक ऊँची पहाडी की चोटी पर स्तिथ है. delhi के सुलतान मोहम्मद बिन तुगलक ने इस किले को दौलताबाद 'The city of fortune' का नामा दिया था . गुप्त सुरंगों और सेना की छुपने की गुप्त रास्तों की सामूहिक श्रंखला इस किले की विशेषताएँ हैं. प्रसिद्ध स्मारक जैसे Jami Masjid, Bharatmata Mandir, the Chand Minar, Elephant Tank and 'Chini Mahal' or Chinese Palace किले के अंदर मोजूद हैं."

 Ashish Khandelwal said...

ताऊ...दौलताबाद (देवगिरी) दुर्ग की ज्यादा जानकारी कुछ यूं है-
दौलताबाद महाराष्ट्र का एक शहर है। देवगिरी नाम से भी प्रसिद्ध। मुहम्म्द बिन तुगलक़ की राजधानी। यह अहमदनगर जिले में स्थित है। दुर्ग 200 मीटर की ऊंचाई पर एक पहाड़ी पर है और यहां तक पहुंचने का रास्ता दुर्गम है। एक जगह पर तो रास्ता इतना संकरा है कि दो लोग से ज्यादा एक साथ नहीं जा सकते। इसके शिखर पर एक पुरानी तोप है, जिसकी दिशा शहर की ओर है।

मैं .यहां कभी गया नहीं हूं, इसलिए यह जानकारी इंटरनेट से ही जुटाई है। अब इतनी खोजबीन करने के बाद यहां जाने की इच्छा कुलबुलाने लगी है।

 

ताऊ उवाच : भतीजे अवश्य जाओ. मजा ना आये तो बिल हमे भिजवा देना.:)

 

 Ashish Khandelwal said...

अतिरिक्त जानकारी
-दुर्ग का निर्माण- 11वीं सदी
- अलाउद्दीन खिलजी ने इस पर आक्रमण किया था
- मुहम्मद बिन तुगलक का तुगलकी फरमान (राजधानी को दिल्ली से दौलतबाद ले जाना) इसी किले से जुड़ा है
- पहाड़ी की ऊंचाई- 200 मीटर
- मीनार की ऊंचाई- 210 फीट
- मीनार का नाम- चांद मीनार
- तोप की लंबाई- 6.1 मीटर
- यहां एक पानी का टांका भी है

 Pt.डी.के.शर्मा"वत्स" said...

इसकी एक खास विशेषता है कि तस्वीर में ये जो तोप दिखाई दे रही है ये पंचधातु से बनी हुई है.(सोना,चांदी,तांबा,लोहा,रांगा)

 Udan Tashtari said...

Daulatabad fort. Situated 13 kms from Aurangabad, it is the strongest fort in Deccan. Known originally as Devagiri by the Yadavs it was built in 11 century AD and was captured by Alah-ud-din Kilji by treachery. This fort was made famous when Muhammud-ibn-tughlaq tried to move his capital here from Delhi. It was this insane migration that brought islam to the south and changed the demography of the Deccan. The fort houses a palace situated on top of a 200m hill and 210 ft minar (Chand minar, in height second only to the more famous Qutub), a 6.1m long cannon and a large water tank.

 अल्पना वर्मा said...

'दौलताबाद किला'-एक उपेक्षित किला ! न शोधकर्ताओं की नज़र पड़ती है न ही इसे संरक्षित रखने के प्रयाप्त उपाय किए जा रहे हैं.कमजोर दीवारें गिर रही हैं..एक प्राचीन धरोहर भारत खोता जा रहा है.इतिहास गवाह है -यही एक मात्र एक ऐसा किला है जिसे कभी कोई जीत नहीं सका.

 


कई राजाओं की तरह अकबर महान ने भी इस पर चार बार चढाई की थी मगर सफल नहीं हुआ.इस के अविजित होने में इस की सरंचना को श्रेय जाता है.

 

यह किला महाराष्ट्र राज्य में औरंगाबाद से १३ किलोमीटर पर पहाडी की चोटी पर स्थित है.

 

यह किला कब बना?


इस में कई मत हैं-


१-स्टुअर्ट piggat के अनुसार यह शाहजहाँ के लिए १६३६ में बनवाया गया था.Maharashtra राज्य के गजेट के अनुसार शाहजहाँ और उस का बेटा औरंगजेब गर्मियों में यहाँ घूमने आते रहते थे.


२-M. S. मेट के अनुसार यह किला १७वि शताब्दी में बनवाया गया था.

 

३-अधिकतर यही मानते हैं की औरंगजेब ने यह किला १६४४ में बनवाया होगा क्योंकि उसी ने दो बार डेक्कन पर जीत हासिल की थी-[१६३६-१६४४ और १६५२-१६५७].
दौलताबाद को देवगिरि के नाम से भी जाना जाता है।

 

यह शहर हमेशा शक्‍ितशाली बादशाहों के लिए आकर्षण का केंद्र साबित हुआ है। दौलताबाद की सामरिक स्थिति बहुत ही महत्‍वपूर्ण थी। यह उत्तर और दक्षिण्‍ा भारत के मध्‍य में पड़ता था। यहां से पूरे भारत पर शासन किया जा सकता था। इसी कारणवश बादशाह मुहम्‍मद बिन तुगलक ने इसे अपनी राजधानी बनाया था।


उसने दिल्‍ली की समस्‍त जनता को दौलताबाद चलने का आदेश दिया था। लेकिन वहां की खराब स्थिति तथा आम लोगों की तकलीफों के कारण उसे कुछ वर्षों बाद राजधानी पुन: दिल्‍ली लाना पड़ा।


-यह भारत के सबसे मजबूत किलों में एक मजबूत किला है.यह तीन मजिला है.
- hilltop महल के भीतर पहुँचने के लिए एक खाई और एक पुल को पार करते हुए एक संकरी सुरंग में दाखिल होना पड़ेगा,कई सौ फीट चलने के बाद सपाट सीधी सीढियां इस रास्ते को जटिल बनाती हैं.इस की बनावट पर मुग़ल शैली का प्रभाव है.


-hilltop महल की बनावट में इस्तमाल खांचे और ग्रिड प्लान का हुबहू प्रयोग शाहजहाँ के बनवाए 'दौलत खाना 'में भी मिलता है. - इस में कुछ कमरे सोने के लिए , कुछ मनोरंजन के लिए और कुछ दर्शक हॉल के रूप में. इस्तमाल होते थे.


यह शाही निवास जैसा ही था. हालांकि, यहाँ मस्जिद और स्नान जैसी सुविधाओं तक पहुँचने में कठिनाई है,

 

-यह प्राथमिक मुगल निवास नहीं था ,न ही यह एक स्थायी आधार पर एक घर था बल्कि अपने दूरस्थ और दर्शनीय स्थान को सुझाता यह स्थान /किला शाही परिवार और दरबारी सदस्यों द्वारा कभी-कभी उपयोग के लिए था.


दौलताबाद में बहुत सी ऐतिहासिक इमारतें हैं जिन्‍हें जरुर देखना चाहिए। इन इमारतों में जामा मस्जिद, चांद मीनार तथा चीनी महल शामिल है। औरंगाबाद से दौलताबाद जाने के लिए प्राइवेट तथा सरकारी बसें मिल जाती हैं।


प्रवेश शुल्‍क: भारतीयों के लिए 5 रु. [?]तथा विदेशियों के लिए 5 डालर। समय: सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक।'डेक्कन ऑडिसी ट्रेन' ले सकते हैं जो प्रत्येक बुधवार 16.40 बजे मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से चलती है.[confirm it] पर्यटकों के लिए ख़ास हिदायत है की इस किले में जा रहे हैं तो पानी की बोतल जरुर साथ रखें क्योंकि वहां ऊपर कहीं भी पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है.


अब इस में कोई जानकारी ज्यादा लगे तो कांट-छाँट कर लिजीयेगा.


[सही जवाब एंव सूचना देने में आज समयाभाव के कारण देर हो गई इस के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.]

 

ताऊ उवाच : कोई काट छांट की आवश्यकता नही है जी. बेहतरीन जानकारी देने के लिये आपका हार्दिक धन्यवाद. हमें मालूम है कि आपके पास समयाभाव है पर कृपया इस जानकारी देने मे यथावत सहयोग बनाये रखें. हम आपके आभारी हैं.

 

 seema gupta said...

(hindi translation kaam nahi kr rhaa)
The most magnificent attraction in Aurangabad is the fort of Daulatabad , around 20 miles from the city. The fort stands on a conical hill about 200 m high, it was originally called Devagiri and founded by the Yadavas in 1187 . It was later captured by Allaudin Khilji and Malik Kafur . In 1327 it became famous as the place where Mohd Bin Tughlaq shifted the entire capital from Delhi .

 

He renamed it as Daulatabad , and marched the entire population of Delhi to Daulatabad , and when he found it was not suitable, again abandoned the city and marched back to Delhi. Many people had to pay a heavy price for this foolish misadventure. Till 1526, this fort was under the Bahmani Sultans of Gulbarga . Later it changed hands between the Mughals and the Nizam Shahi dynasty of Ahmednagar . After Aurangzeb’s death it became part of the Nizam of Hyderabad’s kingdom.

 

One of the more prominent landmarks in the fort is the Chand Minar a 210ft high tower covered with Persian tiles and erected by Alauddin Bahmani to commemorate the capture of the fort. But what is fascinating about the fort is it’s security system. With multiple layers of defence and a number of booby traps, the fort has one of the most advanced security mechanism.
Regards

 दिलीप कवठेकर said...

ये मुहम्मद बिन तुगलक की राजधानी दौलताबाद का मुख्य किला है, जिसे तुगलक नें १३ वीं शताब्दी में देवगिरी से नाम बदल कर दौलताबाद किया.

पिछले साल ही हम वहां गये थे. यहां गुप्त सुरंगों का जाल बिछा हुआ था, और दो नहीं तीन तीन दीवारों के रक्षा कवच से घिरा हुआ है. कहते है, इसे कोई जीत नहीं सकता, सिवाय विश्वासघात के.

अच्छी तरह से संरक्षित स्मारकों में इसका शुमार होता है.यहां ३० मीटर ऊंची चांद मीनार है चार मंज़िल की, और एक ज़ामा मस्जिद है जिसे दिली के कुतुबुद्दिन खिलजी नें बनवाया था.

 

ताऊ उवाच : भाई कवठेकर जी, आपने चांद मीनार की ऊंचाई ३० मीटर लिखी है. हमको गये काफ़ी समय हो गया. आप अभी जाकर आये हैं. हमने गूगल पर सर्च किया तो सब जगह ७० मीटर हाईट मिल रही है.

कृपया इस जानकारी को अपडेट करवा दें तो पाठको के ज्ञान के लिये अच्छा होगा कि असली ऊंचाई कितनी है. हमने वहां visit के समय ऊंचाई वाली बात पर कभी ध्यान ही नही दिया. कहीं आपसे टायपिंग मिसटेक तो नही हुई?

 

 

 

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                                      चतुर्थ भाग : मौज मस्ती

 

 

 

 योगेन्द्र मौदगिल said...

गोलकुण्डा का किला...


अर से भी बतादूं कैसे... कयोंकि इसका कोना ही गोल-गोल है...
बाकि भाई ताऊ की माया ताऊ जाणै...
पता नी कित-कित तै फोटू ठा ल्यावै....


अपणे to पर्स म्हं ब्याह तै पहलां मौसमी चटर्जी की अर आजकल अपणी घरआली की फोटौ रहवै...


मधुबाला जी भी अच्छी लगती थी पर उसकी फोटू म्हारे पिताजी के पास थी...
बाकि ताऊ श्री, सीमा ji का साक्षात्कार सै तो बढिया अर आइडिया एकदम मौलिक..
आप दोनुआं नै घणी बधाई....

 

ताऊ उवाच : भाई आजकल किम्मै तावले तावले फ़ोटू बदलण लाग रे हो? के बात सै?

कभी वापस मौसमी चटर्जी की फ़ोटू घालण की त्यारी तो ना हो री सै? :)

 

 Arvind Mishra said...

सुश्री सीमा गुप्ता जी का साक्षात्कार -मेरे चिट्ठाकार चर्चा स्तम्भ के एक भावी हस्ताक्षर से मिलना बहुत अच्छा लगा -और ताऊ पहली बार तुम थोडा रकीब से लगे ! मुझे लिखना था ना पहले सीमा जी पर ! इतनी खूबसूरत मुअम्मा को बूझने के बाद कौन तुम्हारी उजाड़ पहेली की और रुख करेगा ! राम राम !

 

ताऊ उवाच : आदर्णिय आप परेशान क्युं होते हैं? हमको मालूम थी ये बात. और अभी सु. सीमाजी का पिटारा खाली थोडे हुआ है? उनका बहुमुखी व्यक्तितव है,  फ़टाफ़ट आप भी टाईम लेकर एक साक्षात्कार कर डालिये. बहुत कुछ नया मिलेगा आपको.

 

 विवेक सिंह said...

सीमा गुप्ता जी के बारे में जानकर अच्छा लगा . अपने बारे में जानने की उत्सुकता है :)

 

ताऊ उवाच : लो कल्लो बात. अब बताओ जी कैसा लगा?

 Shastri said...

सीमा जी से मुलाकात करवाई, अच्छा लगा. इस तरह अपने चिट्ठापरिवार के अन्य मित्रों से भी मुलाकात हो जायगी और घनिष्ठता बढेगी. आप एक अच्छा काम कर रहे हैं, लेकिन इसके साथ साथ आपका भार बढता जा रहा है. जरा अपना भी ख्याल रखें, कहीं ऐसा न हो कि दोचार महीने के बाद ताई एक पोस्ट छाप दें:

"आप लोगों के प्रिय ताऊ अब उन खंडहरों में ही कहीं हैं जिनका चित्र वे छापा करते थे. पता नहीं क्या हुआ, कुछ दिनों से समय की कमी को रोते हुए उन्होंने बाल नोचना शुरू कर दिया था. उनको ढूढ निकालने वाले हर बडे बच्चे को उचित इनाम दिया जायगा. वापसी पर उनको काऊंसलिंग के लिये पहले शास्त्री जी के पास, और उसके बाद पुन: चिट्ठा-ट्रेनिंग के लिये एक उडखटोले पर अनूप शुक्ल के पास भेज दिया जायगा जिससे कि उनकी मानसिक हलचल सही हो जाये"

हां यह चित्र देख कर मूत्रशंका होने लगी है अत: कुछ पल के लिये क्षमा चाहता हूँ!!
सस्नेह -- शास्त्री

 

ताऊ उवाच : अच्छा तो आप ज्योतिषी भी हैं? देखना इसका दोष ताई आपके मत्थे ही डालने वाली है. और भाटिया जी से पूछ लेना, उन्होने ताई को क्या दे रखा है?:)

Blogger Smart Indian - स्मार्ट इंडियन said...

ताऊ,
सीमा जी से मिलकर घनी खुशी हुई. यो थारी पहेली तो दिन-पै-दिन कठिन ही होती जावे साईं. मन्नै तो यो इमारत कोई "विवादित ढांचा" दीखै सै. विवादित नू कर कै की कोई इसने रावण का किला बतावेगा और कोई बतावेगा कैकेयी का कोपभवन. करा दिया न विवाद इब बैठे-बिठाए. मैं तो भाई, इस विवाद मैं पड़ता कोन्नी!

 

ताऊ उवाच : अनुज, विवाद म्ह तो पडणा ही पडैगा. फ़िर हम इंडियन कैसे? सारे के सारे

झगडे तो हम ही सुलझाते हैं.:) भले श्रीलंका म्ह शान्तिसेना भेजने का हो?

 

 seema gupta said...

ताऊ जी इब तो शाबाशी दे ही दो अभी तो दिन ढला नही और हम कामयाब हो गये हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा वैसे ये क्लू बढा ही चोखा लगाया आपने.....बाद मे आती हूँ कुछ छानबीन कर डिटेल के साथ......
regards

 

ताऊ उवाच : लो जी, शाबासी के साथ पूरे १०० नम्बर भी दे दिये. इब तो थम राजी?:)

 

Blogger Anil Pusadkar said...

सीमा जी से मिलवाने का शुक्रिया। ये तो झांसी का किला लग रहा है।अब तो पास कर दो ताऊ इस भतीजे का कुछ तो खयाल रखो।

 

ताऊ उवाच : भतीजे बेइमानी के भी कुछ औजार होते हैं. आप ये जवाब क्युं देते हो कि झांसी का किला लगता है.  बेइमानी करने की गुंजाईश तो छोडो कम से कम.

आप कहो ये झांसी का किला है. बस ताऊ इसको झांसी का किला बना कर आपको जिता देगा. आगे से ध्यान रखना. :)

 Dilip Gour said...

नमस्कार ताऊ जी,
मेरी एक सलाह हैं कि विजेता का साक्षात्कार सोमवार या मंगलवार को प्रसारित किया जावे क्योंकि शनिवार को तो सिर्फ़ पहेली का इन्तजार रहता हैं, अगर आप को यह सलाह ठीक लगे तो मुझे लगता हैं कि सभी पाठक भाई पहेली और शक्शात्कार का समुचित रूप से आनंद उठा सकेंगे! बाकी आप हाम ताऊ हैं, भतीजे कि बात मानना या ना मानना ताऊ के ऊपर निर्भर करता हैं......


मुझे तो यह चित्तौडगढ़ का किला लग रहा हैं, बाकी आप जाने,
ऐसी पहेलिया प्रकाशित करने कि कोशिश करें जो बहुत प्रसिद्द हों, जिसका हम ब्लॉग भाई थोडी कम माथापच्ची से उत्तर दे सकें!


अगर सुझाव से आपके सम्मान को ठेस पहुंचे तो क्षमाप्रार्थी हूँ!
धन्यवाद!
सस्नेह!
दिलीप गौड़
गांधीधाम

 

ताऊ उवाच : आपके सुझावों पर ये सरकार गंभीरता पुर्वक विचार का आश्वासन देती है.

और ठेस को भला कभी ठेस लगती है? :)

 

 

 संजय बेंगाणी said...

ताऊ सीमाजी के बारे में जानकर अच्छा लगा. आपको साधूवाद व सीमाजी को शुभकामनाएं.


पहेली का हमारा उत्तर वही है. नहीं पता. आप ये फोटो लाते कहाँ से हो?

 

ताऊ उवाच : आप तो अपना फ़ोन नंबर भेजो जी. मैं आपको सारा राज बता देता हूं. बस फ़िर एक मिनट मे आपको हल मिल जायेगा. आप तो बच्चों की हौसला अफ़्जाई करते रहो जी. बहुत धन्यवाद आपकी उपस्थिति का.

 

 Udan Tashtari said...

सींमा जी से मिलवाये दिये, बहुत आभार. आपके थ्रू पहचान हो गई.. :)

रही बात पहेली की तो मन्ने तो सैम या बीनू फिरंगी का घर लग रहा है..और तो कुछ समझ में आ नहीं रहा है.,

 

ताऊ उवाच : इब क्या करे गुरुदेव? आप तो जानते ही हो कि हम तो आपके चेले हैं और  बहुत ही नेक दिल चेले हैं जी. सो ऐसे काम तो करते ही रहते हैं,:) 

 

अब समझ आया कि  ये सैम और बीनू फ़िरंगी अक्सर मुझसे क्युं कहते रहते हैं कि हमारा दोलताबाद मे बहुत बडा किला है. इनसे दावा लगवा कर अभी कब्जियाता हूं. फ़िर वहां एक हेरिटेज होटल खोलुंगा.:) आपने बहुत सही काम

धंधे  का आईडिया दे दिया. इसीलिये कहते हैं" गुरु हो तो ऐसा" 

 

 मोहन वशिष्‍ठ said...

ताऊ जी राम राम
आज मैं पतंग उडाने में इतना मशगूल हो गया कि पता ही नहीं चला कि आज पहेली का भी विजेता बनना है तो आज देरी के कारण अब तक विजेता कई बन चुके होंगे
आदरणीय सीमा जी का इंटरव्यू बहुत अच्‍छा लगा ऐसा लगा कि आदरणीय श्रीमाऩ

 

श्रीमति ताऊ के साथ मैं भी गया था सीमा जी का इंटरव्यू करने के लिए
बहुत अच्‍छा बोले हैं सीमा जी लेकिन मेरा नाम भूल गये क्‍योंकि कभी किसी जमाने में पहेली हम भी पूछते थे लेकिन किसी कारण से हमें बंद करनी पडी शायद इसीलिए बंद की है कि सीमा जी हमारा नाम लेना भी उचित ना समझें

खैर बडे बडे शहरों में छोटी छोटी बातें तो होती ही रहती हैं
जवाब दूसरे बार में आएगा

 

ताऊ उवाच : भाई आजकल तो छोटे छोटे शहरों मे बड्डी बड्डी बात हौवैं सै? :)

 

 Udan Tashtari said...

देख ताऊ, तुझसे कुछ छिपा तो है नहीं और न हीं पहेली का पहला ईनाम मिल जाने से तू ओ भाटिया जी वाले १० लाख मेरे थ्रू भिजवाणे वाला है, तो भी सच तो तुझको बता ही देना जरुरी समझता हूँ.


आज की पहेली का जबाब तो मन्ने पहले से मालूम था मगर अब जब पहेली ७ बजे छपी तो जबलपुर में बिजली नहीं रहती ७ से ९ बजे. ९ बजे बिजली आई तो इन्टरनेट कनेक्शन गायब जो २ बजे लौटा और २.३० बजे मैने सही जबाब डाल दिया. बिजली गायब और फिर इन्टरनेट गायब का सर्टिफेकट भी लेता आया हूँ ताकि लफड़ा बढ़े तो काम आये.


अब थारा गणित का तो भगवान मालिक है मगर ताई से पूछ कर देखना तो मेरा जबाब ७.३० बजे सुबह का माना जाना चाहिये. अगर उसके पहले किसी ने जबाब दिया हो तो वो फर्स्ट वरना मैं.


देख लेना कल जबाब छापने के पहले वरना विवाद निवारण का क्षेत्र जबलपुर कहलायेगा. इसी बहाने तेरा घूमना भी हो जायेगा और अपना मिलना भी. कानून के हाथ कितने लम्बे होते हैं कि इतनी जल्दी मिलन कराने का इन्तजाम करा दिया. :)

 

ताऊ उवाच : आप बिल्कुल सही कह रे हो जी. इब ये कोई हमारे गुरुदेव की जिम्मेदारी थोडी है कि बिजली ना रहे और नेट नही चले. आप बिल्कुल पहले नम्बर पर जीतंगे. आपका सर्टीफ़िकेट भी मिल गया है.

आप चिन्ता ही मत करो. यहां रिजल्ट के छपने से क्या होता है? नम्बर तो अंदर हैं ना मेरे पास. बस समझ लो की पूरे १०१  नम्बर करके आपके खाते मे चढा दूंगा. बस अब काहे की कोर्ट कचहरी? आप तो पुर्ववत कार्यक्रम से यहां पधारिये.

 

 गौतम राजरिशी said...

कहाँ-कहाँ से लाते हैं आप भी ताऊ ये किले ढ़ूंढ़ कर...
बुहूहूहूहूहू~~~~~~


और सीमा जी का साक्षत्कार बहुत भाया...साप्ताहिक पत्रिका का ये कलेवर अच्छा छा रहा,वैसे इस लिहाज से अपना इंटर्व्यु का नंबर तो आने से रहा...

 

ताऊ उवाच : कोई आईडिया लगाणा पडैगा जी आपको जितवाने के लिये? सोचकै

बताता हुं. आप तो बस आते रहो. एक दिन सही जवाब जल्दी पब्लिश करकै आपको

जितवाऊंगा. :) फ़िर इंटर्व्यु तो अपने हाथ म्ह ही है.

 Udan Tashtari said...

ये तोप तो दुगनी स्पीड की हो गई होंगी ऐसी सवारी लाद कर ताऊ. :)

 

ताऊ उवाच : 

हा.... हा...हा...

हा.... हा...हा...

हा.... हा...हा...

हा.... हा...हा...

 

 

 

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                                       पत्रिका का अंतिम भाग

 

 

अब पत्रिका के इस भाग मे हम आपको पहेली के और सु.सीमाजी के बारे में व्यक्त किये गये विचारों वाली टिपणियां दिखाते हैं.

 

 Ratan Singh Shekhawat said...

ताऊ मुझे तो अभी भी ये ईमारत कहाँ है पल्ले नही पड़ी ! सोमवार को परिणाम देखकर ही अपना ज्ञान बढाऊंगा ! आपकी पहेलियाँ अच्छा ज्ञान वर्धन कर रही है !
सीमा जी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा ! अब विवेक जी के साक्षात्कार का इंतजार रहेगा !

furasatia ji  अनूप शुक्ल said...

सीमाजी का साक्षात्कार पढ़कर अच्छा लगा। सीमाजी के बहुत संवेदनशील मन वाली हैं। उनकी कविताओं में घणे दुख की अभिव्यक्ति है। लगता है कि दुख और पीड़ा का खूब बड़ा गोदाम है। जहां हर रंग के दुख मिलते हैं। दुख ही दुख , पीड़ा ही पीड़ा। दूसरी तरफ़ सीमाजी का बिंदास व्यक्तित्त्व है। हा,हा,हा,हा वाला। हमेशा उत्फ़ुल्ल सा दिखने वाला। सहज, स्वाभाविक। with regards का टैग इनका कापी राइट है।

 

सीमाजी के इंटरव्यू की खास बात है कि उन्होंने ईमानदारी से अपनी बात कही!
सीमाजी अपनी मनचाही पढ़ाई कर सकें इसके लिये शुभकामनायें!
इंटरव्यू पढ़वाने का शुक्रिया।

 Pratap said...

बस इतना ही कहना चाहता हूँ सीमा जी की कविताओं के बारे में---
वियोगी होगा पहला कवि
आह से उपजा होगा गान
निकलकर आंखों से चुपचाप
बही होगी कविता अनजान

 

 P.N. Subramanian said...

सीमा जी का साक्षात्कार बढ़िया लगा. उनके एक और ट्रेड मार्क हुआ करती थी "हा हा हा हा हा". यह जो पहेली है कठिन लगती है. हमने तो शायद हैदराबाद में देखा था. भले ही आप को कहीं और दिखी हो.

 

 लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

सौ. सीमा जी से हुई बातचीत
बहुत अच्छी लगी -
शुक्रिया ताऊ जी ,
उनसे मिलवाने का -
स्नेह,
- लावण्या

 

 रंजना [रंजू भाटिया] said...

सीमा जी के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा ..उनकी लिखी गई बुक्स के बारे जान कर बेहद खुशी हुई ..शुक्रिया
पहेली के लिए कुछ तो क्लू दे ..अभी गौर से देख कर बताते हैं यदि बुझ पाये तो :)

 

 संगीता पुरी said...

फोटो तो अबल्‍कुल ही पहचान में नहीं आ रही ... सीमा गुप्‍ताजी का साक्षात्‍कार पढकर बहुत अच्‍छा लगा....विवेक जी के साक्षात्कार का इंतजार रहेगा !

 

 Smart Indian - स्मार्ट इंडियन said...

ताऊ,
सीमा जी से मिलकर घनी खुशी हुई.

 

 Gyan Dutt Pandey said...

सीमा गुप्ता जी के बारे में बताने का धन्यवाद। ब्लॉग क्षेत्र में अपने अपने क्षेत्र में सशक्त उपलब्धि रखने वाले लोग उड़े हैं, यह फख्र का विषय है।

 

 jayaka said...

ताउजी | आपकी पहेली का यह किला गोलकुंडा का ही लग रहा है|... हम जब हैदराबाद गए थे; तब देखा था|... ९९% तो यही है|


सीमा गुप्ता एक प्रतिभावान लेखिका और कवियित्री है|... उनकी रचनाएँ ही इस बात की गवाही देती है|... इंटरव्यू पढ़ कर मजा आया ताउजी|

 

 संजय बेंगाणी said...

ताऊ सीमाजी के बारे में जानकर अच्छा लगा. आपको साधूवाद व सीमाजी को शुभकामनाएं.

 

 Pt.डी.के.शर्मा"वत्स" said...

वैसे तो एक कवियत्री के तौर पर इस ब्लागजगत मे सीमा जी से सभी परिचित हैं. किन्तु साक्षात्कार के जरिए उनके बारे में विस्तार से जानने का आपने अवसर उपलब्ध करवाया.इस प्रकार के उत्तम प्रयास हेतु आप बधाई के पात्र हैं.
..................................
लो जी इब पहेली की बात कर ली जावै.
मेरे ख्याल से यो "जयगढ का किला" है. अभी तो इसे ही पक्का समझो. अगर जवाब बदलना होगा तो दोबारा से फिर सूचित किया जाएगा.

 

 अल्पना वर्मा said...

सीमा जी के बारे में जानकर अच्छा लगा.अभी तक उन की कविताओं और चित्र संकलन से ही उन की पहचान थी.


एक प्रतिभाशाली व्यक्तित्व है.इन से रूबरू आप ने करा दिया आप का आभार.
आप के इस यह नए आयोजन से 'कुश की कोफी 'को एक प्रतियोगी मिल गया!-

ब्लॉग जगत के ब्लोग्गेर्स को जानने का एक बहुत ही अच्छा मौका ब्लॉग जगत वासियों को मिल रहा है.
धन्यवाद.

 

 डॉ .अनुराग said...

एक सवेदनशील इन्सान ही कवि हो सकता है ..उनकी प्रतिभा शायद ज्यादा है .खास तौर से हिन्दी -उर्दू शब्दों पर उनकी पकड़ . मुझे लगता है वे अगर ओर ज्यादा समय दे तो पूर्ण लेखक बन सकती है .आपका आभार

 

.

 Udan Tashtari said...

सींमा जी से मिलवाये दिये, बहुत आभार. आपके थ्रू पहचान हो गई.. :)

 

 purnima said...

ताऊ राम राम
सीमा जी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा
यह!!!!!!!!!

 

 शाश्‍वत शेखर said...

नमस्कार ताऊ,
सीमा जी से बातचीत अच्छी थी|

 

 दिगम्बर नासवा said...

साक्षातकार बहुत अच्छा लगा..........सीमा जी की सख्शियत  के बारे में जान कर अच्छा लगा.


और मुझे भी ये गोलकुंडा का किला लग रहा है..........आप हमारा नॉन भी लाक कर दें
बसंत पंचमी की बहुत बहुत बधाई

 

 रंजन said...

ताऊ, बहुत confusion है.. पहेली में हरियाली दिखा रहे हो.. लेकिन हिन्ट में रेगिस्तान.. लग राजस्थान रहा है.. पर समझ नही आ रहा क्या? जोधपुर है नहीं, जयपुर है नहीं... न ही उदयपुर, जैसलमेर, कुम्भल्गढ़ है..प्रयास जारी है.. कुछ मिला तो फिर आयेगें..


हाँ सीमा जी के बारे में एक बात.. वो भी समीर भाई की तरह हर ब्लोगर का हौसला बढाती है... बहुत सारे ब्लोग्स पढती है और टिप्पणी भी करती है.. काफी़ हौसला मिलता है.. उनका भी धन्यवाद..

 

 राज भाटिय़ा said...

दौलताबाद किला,ताउ साथ मै अता पता भी लेलो.
https://www.blogger.com/comment.g?blogID=9012783706385676563&postID=1918374609519911197&page=1


सीमा जी के बारे पढा बहुत अच्छा लगा, अब तारीफ़ तो सब ने कर दी है, जो बच गई हो मेरी तरफ़ से, क्योकि सीमा जी की शायरी , कविता , गजल किसी तारीफ़ से भी बढ कर है हम उन की तारीफ़ करे तो लगता है, सुरज को दीपक दिखा रहे हैं. बहुत खुशी हुयी सीमा जी के बारे पढ कर.
धन्यवाद

 

 गौतम राजरिशी said...


और सीमा जी का साक्षत्कार बहुत भाया...साप्ताहिक पत्रिका का ये कलेवर अच्छा छा रहा,वैसे इस लिहाज से अपना इंटर्व्यु का नंबर तो आने से रहा...

 

 बवाल said...

वाह वाह ताऊजी, क्या बेहतरीन रूबरू कराया है आपने एक अज़ीम हस्ती से ब्ला॓गजगत की। सीमाजी का वाक़ई कोई जवाब नहीं है। आपका बहुत बहुत आभार इस साक्षातकार के लिए। और निश्चित तौर पर आप ब्ला॓ग पर एक बहुत ही सार्थक प्रयास कर रहे हैं।


रही बात चित्र पहेली की तो हम दावे के साथ इसे कुछ यूँ बूझे देते हैं कि--
यह हमारे मुल्क की उन्हीं गिनी चुनी ऐतिहासिक धरोहरों में एक है, जिन्हें हम सवा अरब लोग मिलकर भी संभाल नहीं पा रहे हैं। शर्म, शर्म हमें हमपर शर्म है, ताऊजी ।


 Nirmla Kapila said...

tauji ham tochardivarike ander rehne vale nalayak hain aapki paheli boojhna hamare bas ki baat nahi seemaji ka interveu bahut achha laga

 

 सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

सीमा जी के हम तो पहले से ही प्रशंसक हैं। बातचीत पढ़कर और गाढ़ा रंग चढ़ गया है। शायद दीवानगी की हद तक :)

 

 सुशील कुमार छौक्कर said...

पहले तो जी सीमा जी से मुलाकात अच्छी लगी। वो बहुत अच्छा लिखती है। और जी हम कह रहे थे कि इस बार हम जवाब सही देगे तो जी हमें तो इस बार का जवाब भी नही पता। बाकी फोटो अच्छे है लगता है जगह भी अच्छी होगी घूमने के लिए। मैं तो इन सब जगह की लिस्ट बना रहा हूँ। जब लिस्ट पूरी हो जाऐगी तो घूमने जाऊँगा।

 

 नितिन व्यास said...

सीमा जी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा

 

 

 

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                                              छपते छपते :-

 

 

 


श्री सतीश पंचम साहब का ये सही जवाब आया है. बधाई पूरे ८० अंक आपके खाते जमा किये जाते हैं. आप हैं २२ वें नम्बर के विजेता.

 सतीश पंचम said...

आज तक तो आग बुझाई न कभी.....तो पहेली कैसे बुझाउं ताउ :)
कम्बख्त पता ही नहीं चल रहा कौण सी जगह है....सब लोग दौलताबाद फौलताबाद तो बता रहे हैं....तो मेरी भी वही सही।

सीमा जी का साक्षात्कार चंगा लगा।


 

इस अंक के बारे में अपनी राय अवश्य देवें आपकी राय हमारे लिये अमुल्य है.

 

इस साप्ताहिक अंक के, संपादक,प्रकाशक, मुद्रक यानि सब कुछ : ताऊ रामपुरिया

 

इब रामराम. कल मंगलवार को कविता के साथ मिलेंगे.

Comments

  1. ताऊ , राम राम ||
    प्रकाश गोविन्द जी को मेरी ओर से ढेरों बधाइयाँ ||
    @ प्रकाश गोविन्द जी ....
    लो जी अब तो आप भी अवतारों की श्रेणी में आ गए ||
    @ बाकि प्रतियोगी एवं विजेता ...............
    जी आप सभी को मेरी ओर से बहुत बहुत शुभकामनाएं ||
    धन्यवाद ||

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  2. सबसे पहले सबसे पहली बात:

    ताऊ, यह पहेली की श्रृंखला अपनी लोकप्रियता के चरम पर यूँ ही नहीं है..यह एक विशिष्ट आयोजन है जो न सिर्फ मनोरंजक है बल्कि ज्ञानवर्धक भी है. आज जिस तरीके से आपने औरंगाबाद की जानकारी दी है, उसमे बस ठहरने की व्यवस्था और कब जाना उचित है आदि और जुड़ जाये तो एतिहासिक इमारतों की एक बहुत अच्छी पर्यटन गाईड तैयार होती चलेगी. फिर बाद में भाटिया जी से पैसे मंगवाकर उसे छपवा लेंगे ज्वाइंट वेन्चर में. आपका साधुवाद इस मनोरंजक सिलसिले के सूत्रधार बनने का.

    फिर प्रिय विवेक सिंग, इन पर तो मैं नाहक परेशान था. अरे, पहले ही बता देते कि मौज लेना इनकी खानदानी आदत मे शुमार है, तो हम नाहक काहे परेशान होते. बहुत अच्छा लगा विवेक के बारे में जानकर. ताऊ से ज्यादा मुझे इनके नटखट बच्चा होने का शक है. :) शाक शुभहा करना भी तो हम भारतियों का शौक ही कहलाया.

    इब पहेली जीतने पर:

    तो पहले मुझे स्वयं को बधाई और फिर बची वाली सारी विजेताओं में बराबर बराबर.

    अंत में, ताऊ का एक बार फिर जयकारा-बहुत उम्दा कार्य.

    (देख लिया अपने काम का अंजाम-इत्ती बड़ी टिप्पणी लिखवा ली. इत्ते टाइपिंग में तो मैं आज की सारी पोस्टे निपटा देता :))

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  3. ताऊ , पहले तो विजेताओं को हार्दिक बधाई !
    हर दिल अजीज विवेक जी के बारे में ज्यादा जानकर बहुत अच्छा लगा और आपका परिचय देने का अंदाज भी !
    आपकी यह पहेली भी बहुत ज्ञानवर्धक रही !

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  4. प्रकाश गोविन्द जी सहित सभी प्रतियोगी एवं विजेता को बहुत शुभकामनाएं . सभी माननीय पाठको के आशीर्वाद स्नेह और प्रोत्साहन का आभार.."

    Regards

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  5. "विवेक जी तो कैसा लगा आपको अपने बारे में जान कर हा हा हा ....इसमे कोई शक नही की आपकी टिप्पणी अनायास ही मुस्कुराहट का कारण बन जाती है.....आपका बिंदास और खुशमिजाज व्यक्तित्व सराहनीय है...."
    "wish you good luck for everything in life"

    Regards

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  6. ताऊ जी राम राम,
    पहेली के सफल आयोजन हेतु बधाई.साप्ताहिक पत्रिका को खंडों में बाँट देने से पढने वाले को सहूलियत हो गई है.बहुत ही सुंदर रूप दिया है.किले के बारे में जानकारी भी बहुत अच्छी लगी.--
    विवेक जी का इंटरव्यू बहुत ही शानदार रहा.
    उनकी हाजिरजवाबी जबरदस्त है--और ताऊ ने भी उसी स्टाइल में इंटरव्यू लिया.
    बेहद रोचक!उन्हें भी बधाई..
    मगर आज कल वे पहेली में भाग नहीं ले रहे?तीसरे स्थान से कहाँ ७वे स्थान पर पहुँच गए!
    सभी विजेताओं को बधाई.प्रकाश गोविन्द जी आप को ख़ास बधाई क्योंकि आप विजेता ही नहीं प्रथम विजेता बन गए हैं!अब तो enquiry ख़तम कर दी होगी आप ने??
    ताऊ जी जानकारी तो बहुत थी..लेकिन संक्षेप में लिखने के बाद भी ज्यादा लग रही थी इस लिए कांट -छाँट की बात की थी.वैसे भी अब तो बहुत से पाठक अच्छी जानकारी दे रहे हैं.मेरी और से जानकारी पूरे रिसर्च के साथ देना जारी रहेगा.-बहुत बहुत धन्यवाद,
    जय राम जी की.,

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  7. विवेक भाई को बधाई व शुभकामनाएं.


    अगली बार जितने के लिए खेलेंगे :)

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  8. यह पोस्ट-कमेण्ट की घालमेल की पोस्ट है। बहुत बांधती है पाठकों को।
    ताऊ जो भी हो, बहुत कन्टिया फन्साऊ जीव है!

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  9. विवेक भाई को बधाई व शुभकामनाएं.

    जीते या ना जीते,लेकिन जानकारीयां तो मिल रही है।आभार।

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  10. बहुत मेहनत करते हैं आप इस पहेली में .. प्रकाश गोविन्द जी सहित सभी प्रतियोगी एवं विजेता को बहुत बहुत बधाई ..विवेक जी के बारे में जान कर अच्छा लगा .शुक्रिया

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  11. ताऊ अकल आ गई, नकल के चक्कर मे अकल नही लगा पाया। औरंगाबाद और आस-पास का पूरा इलाका घूमा हुआ है।इस किले को तो मै कालेज मे पढते समय ही देख आया था।आगे से खयाल रखूंगा। आपका भतीजा विवेक है बड़ा स्मार्ट।हमेशा मुस्कुराता रहता है,शायद हम लोगो का मन-ही-मन मज़ा लेता है।ईश्वर उसकी मुस्कुराहट को सदा बनाए रखे,नज़र ना लगे किसी की।वर्ना आज-कल हंसते हुए चेहरे नज़र कहां आते हैं।

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  12. राम राम,
    TRP में ताऊ का ब्लोग नं १ पर !!
    बहुत मेहनत की ताऊ आपने..

    विवेक जी के बारे में जानकर अच्छा लगा..

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  13. अरे बाप रे, इत्‍ती लम्‍बी पोस्‍ट, क्‍या गिनीज बुक वालों से कॉन्‍टैक्‍ट किया।

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  14. बहुत ही मौज में लिया और दिया गया साक्षात्कार रहा ताऊ साहब यह विवेक भाई के साथ। और आज यहाँ आपकी इस पोस्ट की पहेली भी बहुत उम्दा रही। पहेलियों के कुछ जवाबों को, सवालों की घेरे में लाने की सम्भावनाएँ तलाश रहे हैं लोग। ख़ूफ़िया ख़बर दे रहा हूँ आपको, समझ जाना ताऊ। हा हा हा !

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  15. पहेली के स‌भी विजेताओं को (मेरे समेत)घणी बधाई.
    अर एक बात ओर, ताऊ यो जो थानै ज‌नोपयोगी काम शुरू कर राख्या है,अल्लाह इसका थामनै बडा सबाब देगा.आपणी जन्नत तै पक्की समझियो.
    इब राम राम.....

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  16. सबको बधाई, (जो दे उसका भला, न दे उसका भी भला)

    चांद मीनार की ऊंचाई की जानकारी मेरे आर्किटेक्ट मित्र नें दी थी. मैने भी नेट पर अभी चेक किया-अलग अलग जानकारी मिल रही है-

    कहीं ७० मीटर, कहीं ३० मीटर (दो जगह), कहीं कुछ. वैसे महाराष्ट्र की अधिकृत साईट पर लिखा है - ६३ मीटर.

    मैने मेरे आर्किटेक्ट मित्र से फ़िर संपर्क किया है, और नापी हुई जानकारी ये है-

    ऊंचाई - ६३.५ मीटर
    व्यास( आधिकतम) - २१.२ मीटर

    आगे से नेट पर जाकर और देखा करूंगा.

    ये पहेली बेहद रोचक और ग्यानवर्धक है इसमें कोई शक नहीं. काफ़ी जानकारी अब नेट पर उपलब्ध है, मगर पहचानना ही टेढी़ खीर है.

    साधुवाद...

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  17. ताऊ सब से पहले सभी हारन वालो को बधाई, भाई उन्होने भी हिम्मत तो दिखाई, ओर कोशिश भी की. वेसे तो मै भी हमेशा हारता ही हुं, चलो जनाब अगली बार जरुर जीतेगे.
    ओर फ़िर सभी जीतने वालो को बधाई, ओर खुब सारी बधाई, विवेक भाई के बारे पढ कर बहुत अच्छा लगा.
    राम राम जी की

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  18. विवेक जी के बारे में जानकर अच्छा लगा !

    सभी विजेताओं को बधाइयाँ !

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  19. जीतन हारण वाले और सब को बधाई.............
    विवेक सिंग जी के बारे में पढ़ कर अच्छा लगा

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  20. मैंने भी पहेली में भाग लिया था
    समझ लो बस भाग लिया था
    कोई इनाम मिला क्‍या
    कहां पर है
    तलाश रहा हूं

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  21. tau ji seema ji ka vivrk ji ka sakshatkaar aaj padha,bahut hi achha laga.aur vijato ko ghani badhai.

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  22. ताऊ रामराम,
    ऐसा है के मैं ना तो पहेलियों के जवाब दे पाता, और ना ही अंक ले पाता. बस जिस जिस के इंटरव्यू लेने हों, फटाफट ले ले. फेर मेरा भी तो लेना है.
    बूझ क्यूं????
    अक नू कोई कैसे भी जवाब दे दे, कितने भी नंबर ले ले. अर तू भी कहीं का भी फोटू लगा ले, आखिर मुसाफिर तो फेर बी मैं ही हूँ.

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  23. घणा घणा आनँद आया जी - विवेक भाई से, सपरिवार मिलकर खुशी हुई
    और ये पहेली तो रोचक प्रवास डायरी + गाईड बनती जा रही है ताऊ जी :)
    बधाई हो जी सारे विजेताओँ को ...
    - लावण्या

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  24. सबसे पहले तो विवेक जी को बधाई और उनके बारे में जानकर अच्छा लगा, वैसे इनका लिखा मैंने कभी नही पढा पर अब लगता है पढना होगा ही। आज की फोटो भी सुन्दर है। जब यहाँ जाऊँगा तो इस तोप पर तो जरुर बैठूँगा चाहे कुछ भी हो जाए बस आप पीछे से पकडे रहना।

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  25. विवेक जी का साक्षात्कार उनकी ही तरह मजेदार रहा

    खूब बधाई ताऊ आपको,एक बढ़िया पत्रिका चलाने के लिये

    देखिये कब तक आ पाता हूँ महू

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  26. विवेक जी के बारे मे जानकर अच्छा लगा।

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  27. बहुत लाजवाब रहा जी।

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